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गुटका-संग्रह ]
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पन्तिम
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प्रध वरस फल लिखते
मंत्रत् महै हीन करि, जनम वर (ष) लो मित्त । रहे सेष सो गत बरष, आवरदा में वित्त | भये वरष गत अङ्क परु, लिख घर वाहू ईस । प्रथम येक मन्दर है, ईह वहाँ इकतीस ॥११॥ परतोस पहले धूरवा, अंक को दिन अपने मन जानि । मुजे घर फल तीसरो, चौथे म अखिर ज ठान ||२|| भये वरष गत ग्रंक को, मन धरवावी चित्त।
पुरणाकार के अंक में, भाग सात हरि मित 181
भाग हातेमान को, लबध अंक मो जानि । जो मिल य पल मैं बहुरि, फल ते घटी बखानि ॥१४॥ घटिका मे ते दिवस मै, मिलि जै है जो अंक ।
तामें भाग जु सस को, हरि मित न सं 100
भाग रहै जो सेष सो, बचे अंक पहिचानि ।
तिन मैं फल घटीका दसा, नाम मिलावो पानि ।।६६||
जन्मकाल के प्रत रवि, जितने बीते जानि |
उतनै वात मंस रवि, वरस लिरुपी पहनानि ॥१७॥
परस लम्यो जा अंत में, सोइ देत चित धारि ।
वादिन इतनी घड़ी जु, पल बीते लगुन वीवारि ॥९८||
लगन लिखे है गोरह जो, जा घर बैठो जाइ।
ता घर के फल सुफल को, दीजे मित बनाइer
इति श्री किरपाराम कृत ज्योतिषसार संपूर्णम्
हिन्दी
३१-३६
१. पाशावली २. शुभमुहूर्त
३९-४१