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१. ज्योतिषसार
कृपाराम
[ गुटका-संग्रह
१-३० र० काल सं० १७६२ कात्तिक सुदी १० ।
प्रादिभाग-दाहा---
सकल जगत सुर प्रसुर नर, परसत गणपति पाय । सो गणपति बुधि वीजिये, जन अपनों चितलाय ।। अरु परसों चरनन कमल, युगल राधिका स्याम । धरत ध्यान जिन चरन को, सुर न () मुनि नाठों जाम ।। हरि राधा राधा हरि, जुगल एकता प्रान | जगत प्रारसी मैं नमों, दूजो प्रतिबिम्ब जान ।। सोभत्ति प्रोले मत्त पर, एकहि जुगल किसोर । मनो लस घन मांझ ससि. दामिनी चार पीर ।।
परसे प्रति जय चित्त को, चरन राधिका स्याम ।
नमस्कार कर जोरि के, भाषत फिरणाराम ।।
साहिजहापुर सहर में, कायथ राजाराम । नुलाराम तिहि बस में, ता सुत किरपाराम ॥६।।
लघु जातक को ग्रन्थ पह, सुनो पंडितन पास | ताके सबै दलोक में, दोहा करें प्रकास ॥७॥
मो प्रबहु जे सुनौ, लयो परम निकारि । साको बहुविधि हेत सौं, कह्यो ग्रन्थ विस्तार ॥॥
संवत् सत्तरह से बरस, और बागवे जानि ।
कातिक सुदी दशमी गुरु, रच्यो ग्रन्थ पढ्यानि | सब ज्योतिष को सार यह, लियो जु अरथ निकारि । नाम पायी या ग्रन्थ को, तातें ज्योतिष सार ।।१०।।
ज्योतिष सार जु ग्रन्थ कौं, फलप अद्ध मनु लेखि ।
तावो नन सास लसत, जुदो जुदो फल देखि ॥११॥