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________________ गुटका-संग्रहं । । ५८ धानतराय हिन्दी रूपचन्द द्यानतराय जगतराम २४१. मैं बंदा तेरा हो स्वामी २४२. जै जै हो स्वामी जिनराय २४३ तुम ज्ञान विभो फूली वसंत २४४. नैननि ऐसी बानि परि गई २४५. लागि लौ नाभिनंदन स्यों २४६. हम प्रातम को पहिचाना है २४७, कौन सयानपन कीन्होरे जीव २४८. निपट ही कठिन हेरी २४६. हो जो प्रभु दीनदयाल मैं बंदा तेरा भूधरदास द्यानतराय जगतराम विजयकीति अक्षयराम २५.. जिनवाणी दरयाव मन मेरा ताहि में सूले गुणचन्द्र २५१. मनहु महागज राज प्रभु २५२. इन्द्रिय ऊपर भसवार चतन २५३. पारसी देखत मोहि पारसी लागी समयसुन्दर २५४. कांके गद फौज बढ़ी है x २५५. दरवाजे बेडा स्वोलि खोलि अमृतचन्द्र २५६. चेति रे हित चेति चेति द्यानतराख २५७. चितामरिण स्वामी सोचा साह्य मेरा बनारसीदास २५६. सुनि माया ठगिनी ते सब ठिगी खाया भूधरदास २५९. बलि परसें श्री शिखरसमेद गिरिरी २६०. जिन गुण गागोरी २६१. वीतराग तेरी मोहिनी मूरत विजयनीति २६२. प्रभु सुमरन की या विरियां २६३, विये प्राराधना तेरी नवल २६४, घड़ो धन प्राजकी ये ही नवल २६५. मैय्या अपराध क्या किया विजयकीति २६६. तजिके गयै पीव हमको तकसीर क्या विधारी, नबल
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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