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________________ ५५८ ] [ गुटका-संग्रह । ५५ १. गुटका सं:२१ । पत्र सं. ३१६ । प्रा०६४५ इञ्च | पूर्ण । दक्षा सामान्य । १. सामाणिकपाठ संस्कृत प्राकृत १-२४ २. सिद्ध भक्ति प्रादि संग्रह प्राकृत २५-७० समन्तभद ७२ ३. समन्तभद्रस्तुति ४. सामायिका प्राक्त ७३-८१ ५. सिद्धिप्रियस्तोत्र देवमन्दि ६. बार्श्वनाथ का स्तोत्र ७. चतुर्विशतिजिनाष्टक शुभचन्द्र १०१-१४६ - पञ्चस्तोत्र १४७-१७० &, जिनवरस्तोत्र १७० -२०० Xxxx १., मुनीश्वरों की जयमाल २७१-२५० २५१-३०७ ११. सकलीकरणविधान १२. जिन चौबीसभवान्सररास विमलन्द्रकीत्ति हिन्दी पद्य पद्य सं० ४८ प्रादिभाग जिनवर चुबीस इ जणि भान पाय नमी कई भवहं विचार । भाविई सुगत ये संत ।।१।। यज्ञजय राजा पाण भणीइ, भाग भूमि आइ पणि सुशीइ । श्रीधर ईशानि देव ।।।। मुचिराज सातमइ भवि जारण, अच्युतेन्द्र सोलम वखारगु । वचनाभि चन्द्रका ॥३॥ सर करि सर्वारथ सिद्धि पासी, मत्र अग्यारम वृपमह स्वामी। मुगितई ज्या जगनाह ॥४॥ विमल बाहना राजा धरि जांयु', पंचामुत्तरि प्रहमिन्द्र सुभाए । इर्श भवजिन परमपद पास्यू ।।५।। विमल वाहन राजा धरिजांयु', पंचामुत्तरि प्रहमिन्द्र खारा । अजित प्रमर पद पास्यू॥६॥
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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