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[ गुटका-संग्रह जगतभूषण भट्टारक जे विश्वभूषण मुनिवर ।
नर नारी मंगलचार गावे पढत पातिग निस्तरै ।। इति नेमिनाथ को मंगल समाता।।
७. पार्श्वनाथचरित्र
विश्वभूषण
हिन्दी
१७-१६
आदिभाग रागुनट
पारस जिनदेव को मुनहु चरित्रु मनु लाई ।। टेक ।। मनउ सारदा माइ, भजी गनधर चितुलाई । पारस कथा संबंध, कही भाषा मुखदाई ।। जंबू दखिन भरय मै, नगर पोदना मांझ । राजा श्री परिबिंद जू, भुगतं सुख प्रयाझ । पारस जिनः ।। विप्र तहां एक बस, पुत्र द्वी राज सुचारा । कमठु बडी विपरीत, विसन से कु अपारा ।। लयु भैया भरभूति सौ, वसुधरि दई सा नाम । रति क्रीडा मेज्या रच्यो, हो कमठ भाव के धाम । पारस जिन । कोष कीयो मरभूति, कहीं मंत्री सो राथ्यो । सीख दई नहीं गह्मो काम रस अंतर साच्यौ । कमठ विष रस कारने, अमर भूति बांधौ जाई । सो मरि वन हाथी भयो, हथिनि भई त्रिय पाहापारस जिनः ।।
अन्तिमपाठ--
अवधि हेत करि बात सही देवनि तब जानी । पदमावति धरणेन्द्र छत्र मस्तिग पर तानी । सब उपसर्ग निवारिकै, पार्श्वनाथ जिनद । सकल करम पर जारिक, भये मुक्ति त्रिमचंद ॥ पारस जिन ।। मूलसंघ पट्ट विश्वभूषण मुनि राई । उत्तर देखि पुराण रचि, या वई सुभाई ॥ वसे महाजन लोग जु, दान चतुर्विधि का देत । पार्श्वकथा निह सुनौ, हो मोछि प्राप्ति फल लेत ॥ पारस जिनदेव को, सुनहु चरितु मन लाइ ।।२५।।
इति भी पार्श्वनाथजी को चरित्रु संपूर्ण ।