________________
गुरुका संग्रह ]
[ ५
मोतीरेणुकद
तब ऐरावण सजकरी, बन्यो शतमुख पाणंद भरी। जस कोटी सताबींस छे अमरी, करें गीत नृत्य वलीदें भमरी ॥३॥ गज कानें सोहें मोवर्ण चमरी, घण्टा टखार यदि सह भरी। माखण्डल अंकुशनेसेंधरी, उच्छवमंगल गया जिन नगरी ॥ राजगणे मलया इन्द्रसह, बाजें वाजिन सुरंग बहु । शके का, जिनवर लावें सही, इन्द्राणी तब घर मझे गई ।। जिम बालक दीठो निज नयों, इन्द्राणी बोलें वर वयणे । माया मेसि सुतहि एक कीयो, जिनवर युगते जइ इन्द्र दीयो ।।
इसी प्रकार तप, ज्ञान और मोक्ष कल्याण का वर्णन है । सबसे अधिक जन्म कात्यागा का वर्णन हैं जिसका रचना के आधे से अधिक भाग में वर्णन किया गया है इसमें उक्त छन्दों के अतिरिक्त लीलावती छन्द, हनुमंतछन्द, दूहा, ॐनमा छयों का और प्रयोग हुआ है। मन्त्र का पाठ इस प्रकार है
कलस
श्रीस धनुष जस देह जहे जिन कछप लांछन । श्रीस सहस बर बर्ष प्रायु संरजन मम रञ्जन ॥ हरवंशी गुणवीमल, भक्त दारिष्ट्र विहंडन । मनवांछितदातार, नयरवालोरसु मान ।। श्री मूलसंघ संघद तिलक, ज्ञानभूषण मट्टाभरणं । श्रीप्रभाचन्द्र सुरिवर कहें, मुनिसुव्रतमंगलकरण ।।
इति मुनिसुव्रत पद सम्पूर्योऽय ॥
पत्र १२० पर निम्न प्रशस्ति दी हुई है....
संवत् १८१८ वर्षे शाके १६८४ प्रवर्तमाने ज्येष्ठ सुदी १ सोमवासरे श्रीमूलसंधे सरस्वतीयच्छे बलात्कार. गणे श्रीकुंदकुंदाचार्यान्वये भट्टारक श्रीपयनन्दि तत्प? भ० श्रीदेवेन्द्रकोत्ति तत्पट्ट भ० श्रीविद्यानन्दि सस्पट्टे भट्टारक श्री मलिभूषण तत्पट्ट भ० श्रीलक्ष्मीचन्द्र भ० तत्स? श्रीवोरचन्द्र तत्पट्ट भ० श्री ज्ञान भूषण तत्ष्ट्र भ० श्रीप्रभाषन्द्र तत्पर्ट भ० श्रीवादीचन्द्र तत्पट्ट भ० श्रीमहीयन्द्र तत्पट्ट भ० श्रीमेरुचन्द्र तत्लट्ट भ० श्रीजनचन्द्र तत्प? भ० श्रीविद्यानन्द तच्छिष्य ब्रह्मनेमसागर पठनार्थं । पुण्यार्थ पुस्तकं लिखाथिसं श्रीसूर्यपुरे श्रीमादिनाथ चैत्यालये ।