SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 622
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५५८ ] भार्या - डिलनंद भुजङ्गप्रपात- श्रमिन्द [ गुटका संग्रह त्रिभुवनजनहितकर्ता भर्ता सुपवित्रमुक्तिवरलक्ष्म्याः । कन्दर्प दर्पवतको सति गुणधर्ता ॥१॥ यो वज्रमौलि संगतमुकुटमहारत्नरतनखनिकरं । प्रतिपातिवरचरणं केबल बोधे मंडितसुभर्ग ||२॥ तं मुनिसुव्रतनार्थं वा कथयामि तस्य छन् । दत्तु सकलभव्याः जिनधर्मपराः मौनसंयुक्ताः ॥३ प्रथम कल्यारण कष्टुं मनमोहन, मगध सुदेश बसे प्रति सोहन । राजगेह नया वर सुन्दर, सुमित्र भूप तिहां जिसो पुरंदर ॥१॥ चन्द्रमुखीमृगनयनी बाला, तस राशी सोमा सुविशाला : पछिमरमणी मलिकुलबाला, स्वप्न सोल देखें गुणमाला ॥२॥ इन्द्रादे से प्रति सु विचक्षण, छप्पन कुमारि सेवें शुभलक्षण । वृष्टि करें धनद मनोहर, एम छमास गया सुभ सुखकर ॥॥३॥ भूपनि अति मंगल, प्रारगत स्वर्ग हवी आवरणवदि बीजें गुरणधारी, जमनी गर्भ रह्यो सुखकारी ॥४॥ धरंति मंगे परं गर्भभारं न रेखावयं भगमपसारं. तथा आगला इन्द्रचन्द्रानरेन्द्राशवारणाया न युक्ता सुभद्रा पुरं श्रः परित्याखिलं देवसंधा गृहं प्रास सोमित्र कंते गता या । स्थित गर्नका निलिएकलंक प्रणम्यावर ते मता हिस्वनाएं [१२] कुमाहि- सेवां प्रकुन्ति गाव किययोज्ज्वलदीपसुवृत्यवाढं । करं पत्रर्गः दाना प्रको सितकुंभं सुपूर्णं ॥३॥ पवित्र वृष्टि शुभं पुण्यपात्रं । जिन गर्भाविनिर्मुक्तयेहूं परं स्तौमि सौमात्मजं सौरूपयेहूं ||४|| श्रीमहि विभुबन चिह्न हवा सुणतां महि । घंटा सिहं परहार सुमति सहसा करें जय जमरव ॥ १ ॥ बैग मामी कि जम्यो, सुरनरवृद जैर्गे तब भाय | ऐरावण आरूढ पुरंदर, सचीसहित सोहें पुरण मंदिर ॥२॥ SSP
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy