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भूमिका
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीर जी, जयपुर के कार्यकर्ताओं ने कुछ ही वर्षों के भीतर अपनी संस्था को भारत के साहित्यिक मानचित्र पर उभरे हुए रूप में टांक दिया है । इस संस्था द्वारा संचालित जैन साहित्य शोध संस्थान का महत्वपूर्ण कार्य सभी विद्वानों का ध्यानहठान अपनी ओर खींच लेने के लिए पर्याप्त है। इस संस्था को श्री कस्तूरचंद जी कासलीवाल के रूप में एक मौन साहित्य साधक प्राप्त हो गए। उन्होंने अपने संकल्प बल और अद्भुत कार्यशक्ति द्वारा जयपुर एवं राजस्थान के अन्य नगरों में जो शास्त्र भंडार पुराने समय से चले आते हैं उनकी बान श्रीन का महत्वपूर्ण कार्य अपने ऊपर उठा लिया । शास्त्र भंडारों की जांच पड़ताल करके उनमें संस्कृत, प्राकृत अपभ्रंश, राजस्थानी और हिन्दी के जो अनेकानेक ग्रंथ सुरक्षित है उनकी का वर्गीकर और पालक पनी बनाने का कार्य बिना रुके हुए कितने ही वर्षों तक कासलीवाल जी ने किया है। सौभाग्य से उन्हें अतिशय क्षेत्र के संचालक
और प्रबंधकों के रूप में ऐसे सहयोगी मिले जिन्होंने इस कार्य के राष्ट्रीय महत्व को पहचान लिया और सूची पत्रों के विधिवत् प्रकाशन के लिए आर्थिक प्रबंध भी कर दिया। इस प्रकार का मणिकांचन संयोग बहुत ही फलप्रद हुश्रा | परिचयात्मक सूची प्रथों के तीन भाग पहले मुद्रित हो चुके हैं। जिनमें लगभग दस सहस्त्र अधों का नाम और परिचय आ चुका है। हिन्दी जगत् में इन ग्रंथों का व्यापक स्वागत हुश्रा और विश्वविद्यालयों में शोध करने वाले विद्वानों को इन ग्रंथों के द्वारा बहुत सी अज्ञात नई सामग्री का परिचय प्राप्त हुश्रा।
___ इससे प्रोत्साहित होकर इस शोध संस्थान ने अपने कार्य को और अधिक वेगयुक्त करने का निश्चय किया । उसका प्रत्यक्ष फल ग्रंथ सूची के इस चतुर्थ भाग के रूप में हमारे सामने है । इसमें एक साथ ही लगभग १८ सहस्त्र नए हस्तलिखित ग्रंथों का परिचय दिया गया है। परिचय यद्यपि संक्षिा है किन्तु उसके लिखने में विवेक से काम लिया गया है जिससे महत्वपूर्ण या नई सामग्री की और शोध कर्ता विद्वानों का ध्यान अवश्य प्राकष्ट हो सकेगा। प्रथ का नाम, प्रथकता का नाम, पंथ की भाषा, लेवन की तिथि, प्रथ पूर्ण है या अपूर्ण इत्यादि तथ्यों का यथा संभव परिचय देते हुए महत्वपूर्ण सामग्री के उद्धरण या अवतरण भी दिये गये हैं। प्रस्तुत सूची पत्र में तीन सौ से ऊपर गुटकों का परिचय भी सम्मिलित है । इन गुटकों में विविध प्रकार की साहित्यिक और जीवनोपयोगी सामग्री का संग्रह किया जाता था । शोध का विद्वान यथावकाश जब इन गुटकों की व्योरेवार परीक्षा करेंगे तो उनमें से साहित्य की बहुत सी नई सामग्री प्राप्त होने की श्राशा है। ग्रंथ संख्या ५५०६ गुटका संख्या १२५ में भारतवर्ष के भौगोलिक विस्तार का परिचय देते हुए १२४ देशों के नामों की सूची अत्यन्त उपयोगी है । पृथ्वीचंद चरित्र आदि वर्णक ग्रंथों में इस प्रकार की और भी भौगोलिक सूचिया मिलती है 1 उनके साथ इस सूची