SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 500
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ पद भजन गीत आदि मसनपाल स्वादम अली जी सादिम से निहार | इगि माव ए सवि परिहरी जो, मन समरइ नवकार Rel सिला संघारज प्रादरया जी, सुर किरण तान ताप । सह परीसह साहसी जो, छेदइ भवना पाप ।।१७।। समतारस माहि भीलतउ जी, मनेघरतउ सुभ ध्यान । काल करी तिरपी पामीयउ जी, सुंदर देव विमान ॥५॥ सुरग तणा सुख भोगवी जी, परमाणंद उसास । तिहां थी बबि वलि पामेस्यह जी, प्रमुकाम सिदपुर वास ॥५६॥ मरहनक जिमते घरद जी, अंत समय सुभकाण | जनम सफल करि ते सही जी, पामड़ परम कल्याण ।।६।। श्री खरतर गच्छ दोपता जी, श्री जिनचंद मुरिगद । जयवंता जग जागीयइ जी, दरसण परमारशंद ॥६॥ श्री गुण सेखर गुण निलउ जी, वाचक श्री नमरंग । वासु सीस भावइ भाइ जी, विमलविनय मतिरंग ॥६२॥ ए संबंध सुहायउ जी, जे गावइ नर नारि । ते पामह सुख संपदा जी, दिन दिन जय जयकार ॥६३।। इति परहनक चउवालियागीतम् समाप्तम् ।। संवत् १६८१ वर्ष मासु सुदी १४ दिने बुधवारे पंडित श्री हर्षसिंहगणिशिष्यहर्षकीसिंगागाशिव्येस्म पारंगम नना लेखि । श्री गुरुवचनगरे । ४२१६. श्रादिजिनपरस्तुति-कमलकीसि । पत्र सं० ५ । मा० १०:४५ च । भाषा-गुजराती। विषय-गीत । २० काल ४ ।ले. काल x। पूर्ण । ३० सं० १८७४ । ट भण्डार । विशेष-दो गीत है दोनों ही के कर्ता कमलकोत्ति हैं। ४२१५. आदिनाथगीत-मुनिहेमसिद्ध । पत्र सं० १ । पा-३४४१२ । भाषा-हिन्दी । विषयगीत । २० काल से० १६५६ । ले० काल X । ० सं० २३३ । छ भण्डार । वियोष-भाषा पर गुजराती का प्रभाव है । ४२१८. आदिनाथ सम्माय"." पत्र सं० १।प्रा.etxv. भाषा-हिन्दी। विषय-गीत । र• काल मे काल । पूर्ण । ३० • २१६८1 भण्डार।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy