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[ इतिहास
असालो धरममछोरे लाल बीच बीच जबुके बीजली रे लाल । तुज बीना मुज नैहारे लाल धरम प्रावे खीज ।।१२॥ रे रे सखी उतावली रे लाल सजी सोला सणगार । चेर बली पंथी सुदररुरे लाल थे छोडी नार ॥१३॥ चार घडी नी प्रब छकी रे लाल पायो मास भरसार । कामण माली कंत जी रे लाल सखी न प्राप्यो ग्राज |१४|| ते उडी उलट धरी रे लाल बालम जोवे भास 1. थूलभद्र गुरु प्रादेस थी रे लाल ऐह बठ्यो चोमास ||१५||
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३७६८. हमीर चौपई"""""| पत्र सं० १३ से ३७ । प्रा. ८४६ इञ्च । भाषा-हिन्दी । विषय- इतिहास | र० काल X । ले. काल ४ ! अपूर्ण । वे० सं० १५१६ । 2 भण्डार ।
धितोमरता में नामोल्लेख कहीं नहीं है। हमीर व अलाउद्दीन के युद्ध का रोचक वर्णन दिया हुआ है।