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इतिहास ]
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२०६७. स्थूलभद्र का चौमास वन"
पत्र सं० २ । प्रा० १०x४ इंच भाषा दी। विषय - इतिहास । र० काल X | ले० कास X पूर्ण | ० सं० २११५ । श्र भण्डार ।
ईडर बाबा धावली रे ए देसी
सावण मास सुहावरो रे लाल जो पौउ होने पास । अरज करूं घरे ग्रावजो रे लाल हूं छू ताहरी दास ।
अतुर नर भावो हम चर छा रे सुगरण नर तू छ प्राण आधार ॥१॥ भादवड़े पीउ गली रे लाल हूं कीम करूं सरगरे ।
रजक घर भावजो रे लाल मोरा छत सार ॥२॥ माजा भासनी परेका कुलतरणी वीछाइ सेज । रंग रा मत कीजिय रे लाल श्राणी होयड़े तेज ॥३३॥ कातीक महीने कामीनि रे लाल जो पीठ होने पास । संदेसा सण भरग रे लाल श्रलगायी केम ॥४॥ नजर निहालो बाल हो रे लाल भावो मींगसर मात्र ! लोक कहावत कहा करो जी पोज्ड़ा परम निवास ||५|| पोस बालम बेगलो रे लाल वडो मुज दोस । परीत पनोतर पालीये रे लाल भाली मन मे रोस ||६|| सीयाले ती धरो दोहलो रे लाल ते माहे बल माह । पोताने पर श्रावज्यो रे लाल ढोलन कीजे नाह १७॥
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लाल गुलाल धबीरसु रे लाल खेलण लागा लोग । तुज विरण मुज नेहा एकली रे लाल फागुण जाये फोक ॥८॥
सुदर पान सुहामरणो रे लाल कुल तणो मही मास । श्रीवारमा बरे श्रावज्यो रे लाल तो करसु गेह गाट ६ बीसारयो न बीसरे है लाला जे तुम बोल्या बोल | बेसाखे तुम नेम लुरे लाल तो बजड ढोल ॥१०॥ केहला दीसे कामो रे लाल काइ करावो बैठ । ढीठ व हवे काहा करो लाल ग्राखी लागी जेठ ।।११।।