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संवत् तेरह से चडवणे, भादव सुदिपंचमगुरु दिए । स्वाति नखत्त चंदु तुलहती, कवइ रल्हू पणवइ सुरसती ||२८||
fear थे तथा जाति से जैसवाल थे। उनकी माता का नाम सिरीया तथा
afa to पिता का नाम आते था ।
जसवाल कुलि उत्तम जाति, वाईसह पाडल उतपाति । पंचकलीया आउट, कवह रल्हू जिणदत्त चरितु ॥
जिनवृत्त चौपई कथा प्रधान काव्य है इसमें कषिने अपनी काव्यत्व शक्ति का अधिक प्रदर्शन - न करते हुये कथा का ही सुन्दर रीति से प्रतिपादन किया है। ग्रंथ का आधार पं. लाखू द्वारा विरचित जित्तचरिङ (सं. (२७५ ) है जिसका उल्लेख स्वयं ग्रंथकार ने किया है ।
मइ जोड जिनदत्तपुरा, लाखू विरय भइलू पमाण ।1
ग्रंथ निर्माण के समय भारत पर अलाउद्दीन खिलजी का राज्य था । रचना प्रधानतः चौपाई छन्द में निबद्ध है किन्तु वस्तुबंध, दोहा, नाराच, अर्धनाराच आदि छन्दों का भी कहीं २ प्रयोग हुआ है। इसमें कुल पच ५५४ हैं । रचना की भाषा हिन्दी है जिस पर अपभ्रंश का अधिक प्रभाव है । वैसे भाषा सरल एवं सरस है। अधिकांश शब्दों को उकारान्त बनाकर प्रयोग किया गया है जो उस समय की परम्परा सी मालूम होती है। काव्य कथा प्रधान होने पर भी उसमें रोमांचकता है तथा काव्य में पाठकों की उत्सुकता बनी रहती है।
काव्य में जिनदत्त मगध देशान्तर्गत बसन्तपुर नगर सेठ के पुत्र जीवदेव का पुत्र था । जिनेन्द्र भगवान की पूजा अर्चना करने से प्राप्त होने के कारण उसका नाम जिनदत्त रखा गया था। जिनदत्त व्यापार के लिये सिंघल आदि द्वीपों में गया था। उसे व्यापार में अतुल लाभ के अतिरिक्त वहां से उसे अनेक अलौकिक विद्यायें एवं राजकुमारियां भी प्राप्त हुई थीं। इस प्रकार पूरी कथा जिनदत्त के जीवन की सुन्दर कहानियों से पूर्ण है ।
११ ज्योतिषसार
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है ज्योतिषसार ज्योतिष शास्त्र का ग्रंथ है। इसके रचयिता हैं श्री कृपाराम जिन्होंने ज्योतिष के विभिन्न ग्रंथों के आधार से संवत् १७४२ में इसकी रचना की थी। कवि के पिता का नाम तुलाराम था और वे शाहजहांपुर के रहने वाले थे । पाठकों की जानकारी के लिये ग्रंथ में से दो उद्धरण दिये जा रहे हैं:
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केदरियों चौथो भवन, सपतमदसौं जान । पंचम अरु नोसौ भवन, येह त्रिकोण बखान ||६| तीजो पसटम ग्यारमों, घर दसम कर लेखि । इनकी उप कहते है, सर्व ग्रंथ में देखि ||७||