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________________ मुनिं सिद्ध प्रणम्याहं नेमिचन्द्रजिनेश्वरं । टीकां गुम्मटसारस्य कुठें मंदप्रबोधिकां ॥ १ ॥ लेकिन अभयचन्द्राचार्य ने जो गोम्मटसार पर संस्कृत टीका लिखी थी उसका नाम भी मन्दप्रबोधिका ही है । 'मुख्तार साहब ने उसको गाथा नं० २० तक ही पाया जाना लिखा है, लेकिन जयपुर के ''भण्डार में संग्रहीत इस प्रति में आ सकल भूषण दिया है। इसकी विद्वानों द्वारा विस्तृत खोज होनी चाहिये । टीका के अन्त में जो टीकाकाल लिखा है वह संवत् १४७६ का है। विक्रमादित्यभूपस्य विख्यातों च मनोहरे । दशपंचशते वर्षे पड़भिः संयुतसप्ततौ (१५७६) टीका का आदि भाग निम्न प्रकार है: श्रीमदप्रतिहतप्रभावस्याद्वादश्ासन - गुहाअंतर निवासि प्रवादिमधसिंधुरसिंहायमानसिंहनंदि मुनींद्राभिनंदित गंगवंशललामराज़ सर्वज्ञायनेकगुणनामधेय - श्रीमद्रामल्लदेव महाबल्लभ - महामात्य पदविराजमान रणरंगमल्लसहाय पराक्रमगुस्सरत्नभूषण सम्यक्त्वरत्ननित्तयादिविविधगुणनाम समा सादितकीर्तिकांत श्रीमच्चा डराय भव्यपु डरीक द्रव्यानुयोगप्रश्नानुरूपरूपं महाकर्मप्राभृतसिद्धान्त जीवस्थानाख्यप्रथमखंडार्थसंग्रहं गोम्मटसास्नामधेयं पंचसंग्रहशास्त्र प्रारंभ समस्तसैद्धान्तिक चूडामरिण श्रीमन्नेमिचंद्रसैद्धान्तचक्रवर्ति तद् गोमटसार प्रथमावयवभूतं जीवकांडं विरचयस्तत्रादौम लगालनपुण्यावाप्ति शिष्टाचारपरिपालन नास्तिकतापरिहारादिफल जननसमर्थ विशिष्देष्टदेवतानमस्काररूपधर मंगलपूर्वक प्रकृतशास्त्रकथनप्रतिक्षा सूचकं गाया सूचकं कथयति । अन्तिम भाग नया श्रीवद्ध मानतान् वृषभादि जिनेश्वरान् । धर्ममार्गोपदेशत्वात् सर्व्वकल्याणदायिकान् ।। १ ।। श्रीचन्द्रादिप्रभतं च तत्या स्याद्वाददेशकं । श्रीमद्गुम्मटसारस्य कुर्वे शस्तां प्रशस्विकां ॥२॥ श्रीमत: शकराजस्थ शाके वर्त्तति सुन्दरे । . चतुर्दशशते चैक - चत्वारिंशत् - समन्विते ॥ ३ ॥१ विख्याते मनोहरे । वर्षे षडभि संयुतसप्ततौ ॥ ४ ॥ विक्रमादित्यभूपस्य दशपंचशते . १. देखिये पुरातन जैन वाक्य सूची प्रस्तावना पत्र :
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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