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कथा-साधि५ ]
२५६२. चंद्रकुंवर की वार्ता--प्रतापसिंह । पत्र सं० ६ । प्रा० ११४४३ च । भाषा--हिन्दी गद्य । विषय-कथा । २० काल XI ले. काल सं० १८४१ भादवा । पूर्ण । वै० सं० १७१ । ज भण्डार ।
विशेष- पद्य हैं। पंडित मन्त्रालाल ने प्रतिलिपि की थी। अन्तिम
प्रतापसिंघ घर मन बसी, कविजन सदा सुहाइ ।
जुग जुग जीवों नंदकुवर, बात कही कविराय ।। ६६ । २५६३. चन्दनमलयागिरीकथा भद्रसेन । पत्र सं० ६। मा० ११४५३ इंच। भाषा-हिन्दी । विषय-कथा। २० काल xले. काल X । पूर्ण । वे० सं०७४ | छ भण्डार ।
विशेष प्रति प्राचीन है। आदि अंत भाग निम्न प्रकार है।
प्रारम्भ
स्वस्ति श्री विक्रमपुरे, प्रणामों श्री जगदीस । सन मन जीवन सुख करण, पूरत जगत जगीस ||१|| वरदाइक श्रुत देवता, मति विस्तारण मात । प्रणमौं मन धरि मोद सौं, हरे विघन संघात ॥२॥ मम उपकारी परमगुरु, गुण मक्षर दातार | बंदे ताके चरण जुग, भद्रसेन मुनि सार ॥३॥ कहाँ चन्दन कहां मलयगिरि, कहां सायर कहां नीर ।
कहिये ताकी वारता, सुरगो सबै पर वीर ॥४॥ अन्तिम
कुमर पिता पाइन छुचे, भीर लिये पुर संग । मांसुन की धारा छुटी, मानो न्हावरण गंग ॥१६॥ दुख जुमन में सुख भयो, भागी विरह विजोग ।
आनन्द सौं व्यारों मिले, भयो यपूरव जोग ।। १८७॥ गाहा
करूहवि चंदन राया, कच्छव मलयागिरिविते ।
कच्छ जोहि पुण्यवान होई, वितता संजोगो हबइ गव ॥१॥ कुल १५८ पच हैं। ६ कत्तिका है।
२५६४. चन्दनमलयागिरिकथा-चतर । पत्र सं० १० । मा० १.१४४ इB | भाषा-हिन्दा । विषय-कथा ! २० काल सं० १७०१ । ले. कान । पूर्ण | वे० मं० २१७२ 1 अ भण्डार । अन्तिम डाल-वाल एहवी साधनुम् ।
कठिन माहावरत राख ही व्रत राखीहि सोइ चतर सुजाण ।। अनुकरमह मुख पामीयाजी, पाम्यो प्रमर विमाण ॥१॥ गुणवंना माधनम् ।।