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________________ २२२ ] [ कथा-साहित्य गुरु गोबिंद ने बिनया जी, अभिनासी जी देव । नन मन तो पागधरा जी, कराजी गुरो की जी सेव ।। गुरु गोविंद बताइया जी, हरी चाय ब्रमंड । पुरु गोबिंद के सरने प्राये, होजो कुल की लाज सब पेली । कृष्ण कृपा ते काम हमारो, भरता पदम यो तेली। पत्र ४० - राग सिंधु । ससिपाल राजा बोलियो जी सुरिण जे राज कवार। जो जादु जुध प्रायसी, तो भोत बजाऊ सार ।। ये के सार धार करु वरखा, बाण बहे अपार । गोला नालि अनेक छूटे सारग्यां री मार ॥ डाहलतरिण फोजे भली पर ग्राप सुगिज्यों राज्य के बार। भूप वतलाझ्याइजी... अन्तिम माता करी ने प्रमुजी रो भारितो भोमि दान दत होय। श्रवण सत गुर सामसो, दोष न लागे कोय।। श्रीकृष्ण को व्याहली, सुर्ण सकल बितलाय । हरि पुरव सब कामना, भगति मुकति फलदाय ।। द्वाराति मानन्द हुबा, मुनिजन देत प्रसीस । जन पिय सामलिया, सोगासरण जगदीस ।। स्कमरिण जी मंचल संपूर्स ।। संवत १८७० का साके १७३५ का भाद्रपदमासे शकपक्ष पंचम्या चित्राभीमनक्षत्रे द्वितीयचरणे तुलाग्ने सभाप्तोर्य ।। शुभं ।। २५५६. कौमुदीकथा--आचार्य धर्मकीर्सि। पत्र सं० ३ से ३४ । प्रा. ११४४ इन्न । भाषासंस्कृत । विषय-कथा । २० काल X1 ले. काल सं० १६६३ । अपूर्ण । वे० सं० १३२ । भण्डार । विशेष ब्रह्म डूगरसी ने लिखा। बीच के १६ से १८ तक के भी पत्र नहीं हैं। २४६०, स्याज गोपीचंदका.....! पत्र सं १६ । मा० ६x६३ इच। भाषा-हिन्दी पत्र । विषयकथा । २० काल Xले. नाल -1 पूर्ण । वे० सं० २५५ । म भण्डार। विशेष-अंत में और भी रागिसियों के पकः दिये हुये हैं। २५६१. चतुर्दशीविधानकथा.....) पत्र सं० १५ । आ० ८४७ च । भाषा-संस्कत । विषय-कथा । २० काल ४।ले. काल पूर्ण । वे० सं०७। च भकार ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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