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________________ [ कथा-साहित्य २५३८. ऋण संबंधकथा — अभयचन्द्रमणि । पत्र ०४ ० १०x४३ इंच भाषा - प्राकृत विषय - कथा | र० काल X | ले० काल सं० १६९२ ज्येष्ठ बुदी १ । पूर्ण । ३० सं० ८४० । अ भण्डार । विशेष – आणंदरायगुरुणा सीसेरा अभयचंदग रिणरणाय माहरणचन्द्रपुत्राणं कहा कि ग्यारघनरसए ११२ ॥ इति रिर संबंधे छ ॥१॥ श्री श्री पं० श्री श्री प्रासदिविजय मुनिभिर्लेखि | श्री किहरोरमध्ये संवत् १६६२ वर्षे जेट वदि १ दिने । २५.३६. औषधदानकथा - ० नेमिदत्त | पत्र सं० ६ । भा० १२४६ इंच | भाषा-संस्कृत विषय। र० काल X | ले० काल X अपूर्ण । ० सं० २०८१ । ट भण्डार । विशेष – २५ तक पत्र नहीं हैं। २१८ ] २५४०, कठियारका नढरी चौपई - मानसागर । पत्र सं० १४ | विषय - कथा | ० काल सं० १७४७ | ले० काल । पूर्ण । वे० सं० १००३ । विशेष – आदि भोग अन्तिम — ० १०४३ इव । भाषा - हिन्दी | भण्डार । श्री गुरुभ्योनमः ढाल जंबूद्वीप मकार एहनी प्रथममुनिवर श्रार्यसुहस्तिकि इक अवसरह नयइ उजेरणी ग्राबियारे । चरा करण व्रतधार गुणमरिण आगर बहु परिवार परिवस्थाए ॥१॥ वन वाड़ी विश्राम लेइ तिहां रह्या दोइ मुनि नगर पठाविया ए । ानक मांग का मुनिवर मान्हूता भद्रानई घरि भाविया ए ॥ २१॥ सेनानी कहे ताम्र शिष्य तुम्हे केहनास्ये काजे श्राव्या इहां ए । प्रार्य सुहस्तिना सीस अम्हे छां श्राविका उद्याने गुरु है तिहाए ॥ ३॥ सत्तर सेताले सबै म तिहां कीधी चौमास ॥ मं० ॥ सदगुरु ना परसाद थी म. पूगी मन की घास || मल है। मानसागर सुख संपदा म जति सागरगरि सोस । मं० ॥ साधुतरा गुणगावतां म. पूगी मनह जगीस || दिग पट कथा कोस थी म रचीयो ए अधिकार अद्धि को उल्लो भाषीयो मं. भिला दुकड़ कार ॥ नवमी काल सोहामजी मं० गौडी राम सुरंग । सागर कहे सांभलो दिन दिन बधतो रंग ॥ १० ॥ इति श्री सोल विषय कठीयार कानड़री जोई संपूर्ण ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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