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________________ पुराण साहित्य ] [ १५ पत्र संख्या ३७१ नागश्री जे नरक गई थी । तेह नी कथा सांभलउँ । तिणी नरक माहि थी। हे जीवनीकलिपः । पछई मरी रोइ सर्प थयउ । सयंम्भू रमणि दीपा माहि । पछाइ ते तिहां पाप करिवा लागउ ! पछई बली तिहां चको मरस पाम्यो । बीजे नरक गई तिहा तिन सागर आयु भोगवी । छेदन भेदन तापन दुख भोगवी । वली तिहा थकी ते निकलियउ। ले जीव पछइ चंपा नगरी माहि चांडाल उइघरि पुत्री उपनी तेहा निचकूल अवतार पाम्य । पछते एक बार वन मांहि तिहां उबर वीणीवा लागी। अन्तिम पाठ पत्र संख्या ३८०-८१ श्री नेमनाथ तिन विभवरण तारणहार तिसी सामी बिहार क्रम कीय। पछाई देस विदेस नगर पाटणना भवीक लोक प्रबोधीया। बलीनिणी सामी समकित ज्ञान चारित्र तप संपनीय दान दीयउ। पछह गिरनार पाया। तिहा समोसरया । पछह षणा लोक संबोध्या । पछइ सहस बरस पाउषउ भोगवीनई दस धनुष प्रमाण देह जाणवी । ईगी पर वणा दीन गया। पाइ एक मासउ गरयउ | पछइ जगनाथ जोग धरी नई। समो सरण त्याग कीयउँ । तिवारइ से घातिया कर्म षय करो चउदमई गुणठाणइ रह्या । तिहा यका मोष सिसि पया । तिहा भाठ गुण सहित जाणवा । वली पांच सई छत्रीस साध साथ मूति गया । तिरणी सामी प्रचल ठाम लाघउ । तेना मुखनीउपमा दोषी न जाई । ईसा सूखनासवी भागी थया। हिवइ रोक था सुगमार्थ लिखी छुइ'। जे काई विरुद्ध बात लिखागी होई ते मोध तिरती कीज्यो । वली सामनी साखि । जे काई मइ मापणी बुध थकी। हरवंस कथा माहि अघ कोउ स लौखीयर होइ। ते मिछामि दुकह था ज्यो | संबत् १६७१ वर्षे आसोज मासे कृष्णपक्षे अष्टमी तिथी। लिखितं मुनि कान्हजी पाउलीपुर मध्ये । विज......शिष्यरणी मार्या सहजा पठनार्थ ।
SR No.090395
Book TitleRajasthan ke Jain Shastra Bhandaronki Granth Soochi Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal, Anupchand
PublisherPrabandh Karini Committee Jaipur
Publication Year
Total Pages1007
LanguageHindi
ClassificationCatalogue, Literature, Biography, & Catalogue
File Size19 MB
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