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: भण्डारों के प्रबन्धकों से निवेदन करूंगा कि वे अपने यहाँ के भण्डारों की समुचित व्यवस्था कर उन्हें वास्तविक उपयोग के योग्य बनायें । क्योंकि आज समय की सबसे बड़ी मांग साहित्य-प्रचार ही है।
हर्ष की बात है कि श्री दि. जैन अ. क्षेत्र श्रीमहावीरजी के मन्त्री महोदय एवं प्रबन्ध कारिणी । के अन्य सदस्यों ने समय की मांग के अनुसार आज के करीब ५ वर्ष पहले एक छोटे से रूपमें अनुसन्धान विभाग की स्थापना की और ग्रन्थभण्डारों की छानबीन तथा प्राचीन एवं नवीन साहित्य के निर्माण के कार्य को अपने हाथ में लिया। तब से आज तक इस विभाग के अधीन बराबर कार्य चल रहा है। अब तक यहां से आमेर शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची, प्रशस्तिसंग्रह, तामिल भाषा का जैन साहित्य, Jainism, key to true Happiness तथा सर्वार्थसिद्धि नामक पुस्तकों का प्रकाशन हो चुका है। अामेर शास्त्र भण्डार की ग्रन्थ सूची एवं प्रशस्ति-संग्रह के प्रकाशित हो जाने से अपभ्रंश भाषा के विशाल साहित्य का । परिचय विद्वानों को मिला। जिससे अपभ्रंश साहित्य की लोकप्रियता का विस्तार एवं उसकी विशेषतायें : विद्वानों को मालूम हुई। हिन्दी भाषा के प्राचार्य डा० हजारीप्रसादजी द्विवेदी ने प्रशस्ति-संग्रह पढ़ने के . | पश्चात् अपने "हिन्दी साहित्य का आदिकाल" नामक ग्रन्थ में जो शब्द लिखे हैं उन्हें पाठकों की जानकारी | के लिये नीचे दिया जाता है
"सन् १९५० में........ अामेर शास्त्र भण्डार ( जयपुर ) के मन्थों का एक प्रशस्ति-संग्रह ! प्रकाशित हुआ है जिसमें लगभग ५० अपभ्रंश ग्रन्थों की प्रशस्तियां संग्रहीत हैं। इनमें से कुछ का तो । विद्वानों को पहिले भी पता था, कुछ नई हैं। इनमें स्वयम्भू , पुष्पदन्त, पद्मकीति, वीर, नयनन्दि, श्रीधर,
श्रीचन्द, हरिषेण, अमरकीति, यशःकीर्ति, धनपाल, श्रुतकीति, माणिक्यराज, रइधू आदि की कृतियां हैं। : अधिकांश रचनायें १३ वीं शताब्दी के बाद की बतायी गयी हैं। पर उसके बाद भी १६ वीं शताब्दी तक
अपभ्रश में रचनायें होती रही हैं। इस प्रशस्ति संग्रह में रइधू, यशःकीर्ति, धनपाल, श्रुतकीर्ति, और ' माणिक्यराज चौदहवीं और उसके बाद के कवि हैं। .
ये ग्रन्थ अधिकतर जैन प्रन्थभण्डारों से ही प्राप्त हुये हैं और अधिकांश जैन कत्रियों के लिखे हुये हैं । स्वभावतः इनमें जैनधर्म की महिमा गायी गयी है और उस धर्म के स्वीकृत सिद्धान्तों के आधार पर ही जीवन बिताने का उपदेश दिया गया है । परन्तु इस कारण से इन पुस्तकों का महस्व कम नहीं हो जाता । परवर्ती हिन्दी साहित्य के काव्य रूप के अध्ययन में ये पुस्तकें बहुत सहायक हैं । .:.
.. वर्तमान में क्षेत्र की ओर से राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारों की वृहद् सूची बनाने का कार्य . चालू है । सबसे पहिले जयपुर शहर के शास्त्र भण्डारों की सूची बनाने का कार्य प्रारम्भ किया गया । और __ अब तक करीव ५ शास्त्र भण्डारों के ७ हजार ग्रन्थों की सूची प्रायः तैय्यार हो चुकी है। प्रस्तुत प्रन्थ सूची
में जयपुर के प्रसिद्ध दो शास्त्र भएदारों के ग्रन्थों को ही लिया गया है।