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राजस्थान में जैन संस्कृति के स्थान २ पर दर्शन होते है। श्राबू के देलवाडा के जैन मन्दिर, जयपुर और सांगानेर के विशाल जैन मन्दिर आदि जैन संस्कृति से सम्बन्धित कृतियें इस बात को साती हैं कि प्राचीन काल में राजस्थान जैन धर्म के प्रधान अभ्युदय का केन्द्र था। यहाँ के शासक यद्यपि जैन धर्मावलम्बी तो नहीं थे किन्तु वे समय समय पर जैन धर्म को प्रभावना के लिये काफी सहयोग दिया करते थे।
___ राजस्थान में सबसे अधिक शास्त्र-भण्डारों का मिलना इस बात का प्रमाण है कि यहां के लोग बड़े श्रद्धालु और सरस्वती भक्त थे। जहां कहीं भी जैन मन्दिर है वहां छोटा मोटा शाख भण्डार ऋचश्य है। आमेर, जयपुर, नागौर. जैसलमेर, पाटन, दौसा, मोजमाबाद, दांता, कुचामन, सीकर, मारोट, जाधपुर, बीकानेर श्रादि स्थानों के शास्त्र भण्डारों में प्राप्त ग्रन्थों की संख्या की जावे तो सम्भवतः वह एक लाख से अधिक पहुंच सकती है । अकेले नागोर के भट्टारकीय शास्त्र भण्डार में १२-१३ हजार से भी अधिक ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं। इन भण्डारी में केवल जैन साहित्य अथवा जैनाचार्यों द्वारा लिखा हा साहित्य ही नहीं है किन्तु अजैन विद्वानों द्वारा लिखे हुये प्रन्थ भी हजारों को संख्या में मिलते है। उनमें बहुत से अन्ध तो ऐसे भी हैं जिनकी प्रतियां केवल जैन भण्डारों में ही उपलब्ध हुई हैं। माहित्य के इस महान संग्रह में जनों को असाम्प्रदायिकता सदैव प्रशंसनीय रहेगी ।
राजस्थान के इन प्रन्थालयों की सुरक्षा का वास्तविक श्रेय भट्टारकों, यतियों, विद्वानों एवं श्रावकों को है जिन्होंने साहित्य को नष्ट होने से बचा कर साहित्य एवं देश की सबसे बड़ी सेवा की। उनके इस कठिन प्रयत्न स्वरूप ही आज हमें प्राचीन शास्त्रों के दर्शन होते हैं। लेकिन यह भी कम दुःख का विषय नहीं है कि हमने शास्त्रों की सुरक्षा को ओर तो ध्यान रखा किन्तु जब उनके प्रचार का समय
आया तो ग्रन्थों को ताले में बन्द करके हम गहरी मोहनिद्रा में सोते रहे और जगाने पर भी नहीं जागे। इस स्थितिपालकता से हमारी जो हानि हुई, उसका अंदाजा लगाना कठिन है। उन्हें बाहरी आक्रमण से तो किसी तरह बचाया, किन्तु भण्डार के भीतर रहने वाले ग्रन्थों के महान् शत्रु चूहे, दीमक एवं सीम आदि को प्रन्धों पर प्रहार करने की पूर्ण स्वतन्त्रता देदी, जिससे उन्होंने हजारों ग्रन्थों का सफाया कर दिया । फिर भी हमारा अहोभाग्य है कि जो कुछ हमें विरासत में मिला है वह भी कम नहीं है।
जैसा कि पहिले कहा जा चुका है कि राजस्थान में जितना जैन साहित्य मिलता है उतना भारत के अन्य प्रान्तों में नहीं मिलता | फिर भी इन भण्डारों में उपलब्ध साहित्य के विषय में परिचय. प्रकट करने का समाज की ओर से कोई विशेष प्रयत्न नहीं किया गया । जैसलमेर, पाटन, आमेर आदि कुछ भएदारों को छोड़कर शेष भण्डारों को अभी तक कोई पूरी छानबीन भी नहीं हुई है जिससे यह जाना जा सके कि अमुक भण्डार में कौन कौनसे ग्रन्थ हैं। प्रन्थालयों का निरीक्षण एवं उनकी सूची आदि के प्रकाशन के कार्य में श्वेताम्बर समाज का प्रयत्न तो अवश्य ही प्रशंसनीय है। लेकिन दिगम्बर जैन नमाज का अभी इस ओर कुछ भी ध्यान नहीं गया है । इसलिये मैं सभी दिगम्बर जैन मंदिरों एवं शास्त्र: