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श्री कोर सेवा मन्दिर सरसावा की तरफ से पं० परमानन्दजी ने भी कई दिन तक जयपुर में ठहर कर इस ग्रंथ भण्डार का निरीक्षण किया है तथा खास खास ग्रंथों की प्रशस्ति आदि भी नोट करते गये हैं। इन प्रन्थों का ज्यादा से ज्यादा उपयोग हो, इसके लिये बाहर की सुप्रसिद्ध ग्रंथ प्रकाशन संस्थाओं, जैसे शान्ति निकेतन बोलपुर, भारतीय ज्ञानपीठ काशी, वीर सेवा मंदिर सरसावा आदि को समय २ पर प्राचीन प्रतियां भेज कर उनके कार्य में पूरा सहयोग दिया जाता है।
प्रबन्ध कारिणी समिति का विचार है कि अब इस भंडार को अधिकाधिक उपयोगी बनाया जाय और जगह जगह से अलभ्य ग्रंथों को लाकर या उनकी प्रतिलिपियां मंगाकर बडा ग्रंथालय स्थापित किया जाय ताकि विद्वान् लोग इससे लाभ उठा सकें। इस कार्य के लिये जयपुर के नये बनने वाले त्रिपोलिया ( चौडा रास्ता ) सदर बाजार में एक बड़ी बिल्डिंग खरीद भी ली गयी है । उसी बिल्डिंग में एक बड़ा हाल बनवा कर उसमें इस प्रन्थालय की स्थापना करने का विचार किया गया है ।
जैन समाज के विद्वान् तथा साहित्यप्रेमियों से हमारी प्रार्थना है कि वे प्राचीन हस्तलिखित प्रन्थ इस प्र'थालय को भेट करें तथा अन्य सभी प्रकार की सहायता द्वारा इसे समृद्ध बनान में सहयोग दें | वर्तमान काल में जैनघम के प्रचार तथा सच्ची प्रभावना का इससे बढ़िया और कोई उपाय नहीं है। जैन समाज को जीवित रहना है तो उसको चाहिये कि सबसे पहले अपने साहित्य की रक्षा तथा प्रचार करने के लिये दृढ संकल्प कर लें और बृहत् राजस्थान की संभावित राजधानी जयपुर नगर में जो कि हमेशा से जैनियों का केन्द्र रहा है, इस मंथालय को उन्नत बना कर जैनधर्म की सच्ची सेवा व प्रभावना में हमारा हाथ बटावे - सबसे हमारी यही प्रार्थना एवं अनुरोध है ।
समाज का नम्र सेवक
रामचन्द्र विन्दुका
मन्त्री - प्रबन्ध कारिणी कमेटी
भी दि० जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी
जयपुर |