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जब जयपुर दि० जैन पंचायत की तरफ से श्री महावीर क्षेत्र को प्रयत्व कारिणी समिति बनी तो उसने इस मन्दिर व शास्त्र भंडार को अपने अधिकार में लिया । उसने मंदिर का जीर्णोद्धार कराया और शास्त्र भंडार को भी खुलाकर देखा गया । शास्त्र भंडार में कैसे २ ग्रंथ रत्न हैं इसको देखने के लिये श्रीमान् श्रद्धेय पं० चैनसुखदासजी न्यायतार्थ ने बहुत प्रेरणा दी और उनके शिष्यों ने जिनमें पं० श्री प्रकाशजी शास्त्री. पं० भंवरलालजी न्यायतीथं आदि मुख्य हैं, पांच-सात दिन आमेर ठहर कर प्रन्थों की सूची भी बनाई, किन्तु उससे न तो पंडित चैनसुखदासजी को ही संतोष हुआ और न प्रबन्ध कारिणी समिति को हो । इसके पश्चात कई जैन विद्वानों से आग्रह किया गया कि वे महीने दो महीने आमेर में रह कर पूरा सूचीपत्र तो बनावें किन्तु किसा ने भी इस पुनीत कार्य को करने की तत्परता नहीं दिखायी। आखिर यही निश्चित हुआ कि जब तक यह मंदार जयपुर न लाया जावे इसकी न तो सूची ही बन सकती है और न कुछ उपयोग ही हो सकता है। फलतः प्रन्थ भंडार को जयपुर लाया गया और श्रीयुत भाई साहब सेठ बंधीचंदजी गंगवाल की हवेली में ही एक कमरा उनसे मांग कर मन्थों को उनाइल पडितजी साहब ने वर्गीय भाई मानभन्द्रजी आयुर्वेदाचार्य को सूची बनाने के लिये नियत किया और उन्होंने स्वयं तथा अपने अन्य साथियों को लेकर एक सूची पत्र बना दिया | इसके पश्चात् क्षेत्र को प्रबन्ध कारिणी समिति ने पंडित चैनसुखदासजी न्यायतीर्थ की सम्मति के अनुसार भंडार का बड़ा सूची पत्र बनाने व प्रशस्ति संबध आदि अनुसंधान कार्य के लिये भाई कस्तूरचंद जी शास्त्री एम. ए. को नियत किया और उन्होंने नियमित रूप से कार्य करके यह सूची पत्र तैयार किया जो आज आप महानुभावों के समक्ष उपस्थित है I
ha २ वर्ष से क्रडार का अनुसंधान कार्य व्यवस्थित रूप से चल रहा है। इस थोड़े से समय में ही भण्डार का विस्तृत सूचीपत्र और वृहद् प्रशस्ति-संग्रह तैयार हो चुके हैं । सूचीपत्र तो आपके सामने है तथा प्रशस्ति-संग्रह भी प्रेस में दिया जा चुका है। उक्त दोनों पुस्तकें साहित्य के अनुसंधान कार्य में काफी महत्वपूर्ण तथा उपयोगी साबित होंगी ऐसी आशा है ।
इसी विभाग की ओर से समय २ पर "वीरवाणी" आदि प्रसिद्ध जैन पत्रों में अनेक खोजपूर्ण लेख प्रकाशित कराये चुके हैं। अभी तक ब्रह्म रायमल्ल, ब्रह्मजिनदास, भट्टारक ज्ञानभूषण, पं० धमदास, पंडित श्रखयारज, पंडित रूपचंद, कविवर त्रिभुवनचन्द्र श्रादि लेखकों और कवियों के साहित्य पर खोज पूरा लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
चतुर्दश गुणस्थान चर्चा नामक महत्वपूर्ण हिन्दी गद्य के प्रन्थ का सम्पादन भो प्रारम्भ हो गया है। उक्त प्रन्थ शीघ्र ही प्रकाशित होकर स्वाध्याय प्रेमियों के सामने आने वाला है ।
जयपुर में जब अखिल भारतीय हिस्टारिकल रिकार्डस कमीशन (All India Historical Records Commission ) का २४ वां अधिवेशन हुआ था जब उसके तत्वावधान में ऐतिहासिक सामग्री की एक प्रदर्शिनी भी हुई थी । प्रदर्शिनी में उक्त भण्डार के प्राचीन प्रन्थों को रखा गया था। प्रन्थों की प्रशस्तियों में लिखित ऐतिहासिक सामग्री को पढकर बड़े विद्वानों ने सराहना की थी।