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________________ भ० विजयको ति तथा चारित्र सम्राट थे । इनके एक अन्य शिष्य श्र यशोधर ने अपने कुछ पदों में विजयकीर्ति का स्मरण किया है तथा एक स्वतंत्र गीत में उनकी तपस्या, विद्वत्ता एवं प्रसिद्धि के बारे में अच्छा परिचय दिया है। गीत का अन्तिम मार्ग निम्न प्रकार है: अनेक राजा चला सेवि मालवी मेवाड़ गुजर सोरठ सिंधु सहिजि अनेक भड भूषाल || दक्षण मरहरु चौरण कुकरा पूरवि नाम प्रसिद्ध । छत्रीस लक्षण कला बहुतरि अनेक विद्यारिधि ॥ श्रागम वेद सिद्धान्त व्याकरण मावि भवीयरण सार | नाटक छन्द प्रमाण सूभि मित जपि नवकार ॥ श्री काष्टा संधि कुल तिलुरे यती सरोमणि सार । श्री विजयकीरति गिरु गणधर श्री संघकरि जयकार ॥४ ६ ε १. पूरा पद देखिये- लेखक द्वारा सम्पादित- राजस्थान के जैन शास्त्र भण्डारो की ग्रन्थ-सूची, चतुर्थभाग- पृ.सं. ६६६-६७ । २. विजयकोत गीत, रजिस्टर नं. ७, पृ. सं. ६० | महावीर भवन, जयपुर । 2
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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