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________________ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व बसे इस रास की 'भाषा' अपभ्रंश प्रभावित भाषा है, किन्तु उसमें लावण्य की भी कमी नहीं है। ६० संसार ताउ विनासु किम दुसइ राम तिवइ । श्रोsयु मोहनुपास वलीयनतो नेह नित चीइ ||१८|| इस रास को राजस्थान के जैन शास्त्र भडारों में कितनी ही प्रतियां मिलती हैं । ६. बटुकर्म रास : 2 यह कर्म सिद्धांत पर आधारित लघु शसक काव्य है जिसमें इस प्रारणी को प्रतिदिन देव पूजा, गुरूपासना, स्वाध्याय, संयम, तप एवं दान- इन पट्कर्मों के पालन करने का सुन्दर उपदेश दिया गया है। इसमें ५३ छन्द है और अन्तिम छन्द में कवि ने अपने नाम का किस प्रकार परि उल्लेख किया है, उसे देखिये गुए उनका उपह घरि रहइतां जे आचरइ, ते नर पर मवि स्वर्गं पासइ । नरपति पद पामी करीय, तर सघला नइ पाइ नाम६ । समकित धरतां जु घर, श्रावक ए प्राचार | ज्ञानभूषरण गुरु इम भरणार, ते पामइ भवपार || ७. जलगालन रास : यह एक लघु रास है, जिसमें जल छानने की विधि का वर्णन किया गया है। इसकी शैली भी षट्कर्म रास एवं पोसह रास जंसी है। इसमें ३३ पद्य है । कविने अपने नाम का अन्तिम पद्य में उल्लेख किया है: — गलउ गाशीय गल पागीय से तन मन रंगि, हृदय सदय कोमल धरु चरम त एह भूल जाएउ | कुछ नीलू गंध करइ ते पाणी लुप्ति घरिम प्राउ | पापीय प्राणी वतन करी, जे गलसिइ नर-नारि । श्री ज्ञान भूषण गुरु इम भराइ, ते तर सिइ संसारि ॥३३॥ भ० ज्ञानभूषण' की मृत्यु संवत् १५६० के बाद किसी समय हुई होगी । लेकिन निश्चित तिथि को अभी तक खोज नहीं हो सकी है । ग्रंथ लेखन कार्य : उक्त रचनाओं के अतिरिक्त अक्षयनिधि पूजा आदि और भी कृतियां हैं ।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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