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________________ १२ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व स्थान दिया हुआ है उसी के आधार पर इनके बिहार का कुछ अनुमान लगाया जा सकता है। संवत् १५१८ में सोजत नगर में थे और वहां इन्होंने संभवतः अपनी प्रथम ऐतिहासिक र मना 'गुर्वावलि' को समाप्त किया था। संवत् १५३६ में गोडिल्लीनगर में विराज रहे थे यहीं इन्होंने यशोधर चरित्र (संस्कृत) को समाप्त किया या तथा फिर यशोभर चरित (हिन्दी) को भी इसी नगर में निबद्ध किया था। साहित्य-सेवा सोमकीति अपने समय के प्रमुख साहित्य सेवी थे। 'संस्कृत एवं हिन्दी दोनों में ही इनको रचनामें उपलब्ध होती हैं। राजस्थान के विभिन्न शास्त्र भण्डारों में इनकी अब तक निम्न रचना प्राप्त हो चुकी हैसंस्कृत रचनाये (१) सप्तव्यसनकथा (२) प्रद्युम्नचरित्र' । (३) यशोधरचरित्र . राजस्थानी रचनायें . . :: (१) गुर्वावलि (२) यशोधर रास (३) रिषभनाथ की धूलि (४) मल्लिगीन (५) आदिनाथ विनतो (६) अपनक्रिया गीत इन रचनाओं का संक्षिप्त परिचय निम्न प्रकार है (१) सप्तव्यसनकथा यह कथा साहित्य का अच्छा बन्थ है जिसमें सात व्यसनों के आधार पर सात कथायें दी हुई हैं । अन्य के भी साल ही सर्ग हैं। प्राचार्य सोमकोति ने इसे संवत् १५२६ में माघ सुदी प्रतिपदा को समाप्त किया था। १. जैनाचार्यों ने—जुन खेलना, चोरी करना, शिकार खेलना, वेश्या सेवन, पर स्त्री रोचन, नथा मद्य एवं मास सेवन करने को सप्त व्यसनों में गिनाया है।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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