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________________ ब्रह्म जिनदास जे जे बात निमित्ती कहीं, राजा आगले सार । ते ते सब सिद्ध गई, थोगिक पुन्य अपार || तब राजा आमंत्रि मनहि करि विचार । माहरो बोल विरथा हव, धिग धिग एह मंझार ॥ तब रासि बोलावीयु, सुमती नाम परधान । अवर मंत्री बहु प्रावी आ, राजा दीघु बहु मान ॥ इस रास की एक प्रति ग्रामेर शास्त्र भण्डार जयपुर में संग्रहीत है । पाण्डुलिपि में ५२ पत्र हैं जो. ९३" x ४३' आकार वाले हैं। १४. समकित-मिण्यात रास ___ यह एक लघु रास है जिसमें शुद्धाचरा पर अधिक बल दिया गया है तथा जिन्होंने अपने जीवन में सम्यक चारित्र को उतारा है उनका नामोल्लेख किया गया है । पद्यों को पा ७० है । , पीपल, ग, न प हामी घोड़ा, खेजड़ा आदि को न पूजने के लिये उपदेश दिया गया है। राम को राजस्थानी भाषा है तथा वह सरल एवं सुबोध है । एक उदाहरण देखिये-- गोरना देवि पुत्र देह, तो को इघांडी यो न होछ । पुत्र धरम फल पामीह', एह विचार तु जोइ ॥३॥ घरमई पुत्र सोहावरणाए, धरम लाछि भंडार ।। घरमइ घरि बधावणा, घरमइ रुप अपार ||४|| इम जारणी तह्म परम करो, जीव दया जगि सार । जीम एह्वां फल पामीई, यति तीए संसारि ।।५।। रास का अन्तिम पाठ निम्न प्रकार है थी मकल कीरति गुरु प्रणमौना, थी भुवनकीरति अवतारतो । नाजिशदास भगणे ध्याइए, गाइए सरस अपारतो ॥ इति समिकितरास मिथ्यातमोरास समाप्त । १५. सुदर्शन रास इस रास में सेठ सुदर्शन की कथा दी हुई है जो अपने उत्सम एवं निर्मल चरित्र के कारण प्रसिद्ध था। रास के छन्दों की संख्या ३३७ है। अन्तिम छद इस प्रकार है साह सुदर्शनः साह सुदर्शन सीयल भन्डार । समकित मुणे मागुण पाप, मिथ्याल रहित मतियल ॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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