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________________ बह्म जिनदास बात कोल निसारण दरवडि, भल्लरि नाद ते रण झणं । कंसाल मुगल भेरी मशाल, ताल तबलि से प्रति घरी ।। इशी परिहि नाद गहिर सादि', इंद्रपारती उतारए ।। गावंत धवल गीत मंगल, राग सुरस मनोहरं ।। नाचंति कामिशिगजह गामिशि, ताव गाठ मो? बरं ! सुगंध परिमल भाव निरमल, इद्र भारती उतारए । १५. होली रास इस रास में जैन मान्यतानुसार होली को कथा दी गई है कथा रोचक है । रारा में १४८ पद्य हैं जो दूहा चौपाई एवं वस्तुबंध छंद में विभक्त हैं । इणि परि तिहां थी काठीआ, नयर मांहि था तेह जगयां । पापी जीवनि नहीं किहां सुख, महिलोकः परलोक पामि दुःस्त्र । बन माहि गयां ते पाप, पाम्यां अति दुस्ख संताप । धर्म पाखि रनि सहू कोइ, सीयल संयम विण मूलौ भमि लोड इस ग्रथ की एक प्रति जयपुर के बड़े तेरहपंथो मन्दिर के शास्त्र भण्डार के एक गुटके में संग्रहीत है । रास की भाषा का एक उदाहरण देखिये प्रजापति तेणी नपरीय राय, प्रजावती तस रांगी। गज तुरंगम रथ अपार, दीइ लषमी बहू माणि ॥७॥ यति नाम परघान जारिण, वसुमतो तस रांणी । विष्णु, भट्ट परोहित जारिण, सोमबी तस नारी।।८।। एक भगत करि रुपाए, अज्ञात क्राप्ट बखापतु । एकादशी उपवास करिए, दीतवार सोमवारि जांगों तु ।८८|| दान दीद' लोक अप्लिघणांए, गो प्रादि दश वखारिंग तु । मूड माहि हदुजाण तु, मांन पाम्या प्रति धरणुगए 11८६।। इणी परि ते नयरी रहिए, लखि नहीं लेहनि कोइ तु । पुरांश शास्त्र पईि अति घणां ए, लोकसु भाक्षन जोयतु ।।१०।। ११. धर्मपरीक्षा रास-- इस रास में मनोवेग पोर पवनवेग के आधार से कितनी ही कथायें दी हुई हैं जिनका मुख्य उद्देश्य मानव को गलत मार्ग से हटाकर उत्तम मार्ग पर लाना है। मनोवेग शुद्धाचरण वाला है जबकि पवनवेग सन्मार्ग से भूला हुआ है । रास सुन्दर है और इसके पढ़ने से कितनी ही अच्छी बातें उपलब्ध होतो हैं ।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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