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भ• सकलकोति
जैन सिद्धान्त की जानकारी के लिए यह बड़ा उपयोगी है । ग्रन्थ १६ सौ
१३. वमान चरित्र-इस काव्य में अन्तिम तीर्थकर महावीर वर्द्धमान के पायन जीवन का वर्णन किया गया है । प्रथम ६ सगों में महावीर के पूर्व भवों का एवं शेष १३ अधिकारों में गर्भ कल्याणक से लेकर निर्वाण प्राप्ति तक विभिन्न लोकोत्तर घटनामों का विस्तृत वर्णन मिलता है । भाषा सरस किन्तु काव्य मय है। वर्णन शैली अच्छी है । कवि जिस किसी वर्णन को जब प्रारम्भ करता है तो यह फिर उसी में मस्त हो जाता है । रचना संभवतः अभी तक प्रप्रकाशित है।
१४. यशोघर चरित्र-राजा यशोधर का जीवन जन समाज में बहुत प्रिय रहा है। इसलिये इस पर विभिन्न भाषामों में कितनी ही कृतियां मिलती हैं । सकल कोत्ति की यह कृति संस्कृत भाषा की सुन्दर रचना है । इसमें प्राट सर्भ हैं । इसे हम एक प्रबन्ध काव्य कह सकते हैं।
१५. सबभाषितालि—यह एक छोटासा सुमाषित ग्रन्थ है जिसमें धर्म, गगन, मिथ्यान, इद्रिय. ती माननास, नामसेतन, निम्रन्थ सेवा, तप, त्याग, राग, ष, लोभ, आदि विभिन्न विषयों पर अच्छा.प्रकाश डाला गया है। भाषा सरल एवं मधुर है । पद्यों की संख्या ३८९ है। यहां उदाहरणार्थ तीन पद दिये जा
सर्वेषु जीवेषु दया कुरुत्वं, सत्यं वचो वहि धनं परेपा । चायमसेवा त्यज सर्वकालं, परिग्रहं मुच कुयोनिबीजं ।।
यमदमसमजातं सर्वकल्याणबीज ।
सुगति-गमन-हेतु तीर्थनार्थ प्रणीतं । मवजलनिधिपोतं सारपाययमुच्च--
स्त्यज सकलविकारं धर्म आराधयत्वं ।। (३) मायां करोति यो मूढ़ इन्द्रयादिकमेवनं ।
गुप्तपापं स्वयं तस्य व्यक्तं भवति कुष्ठवत !! १६. श्रीपाल चरित्र-यह सकलकत्ति का एक काव्य ग्रन्थ है जिसमें ७ परिच्छेद हैं । कोटोभट थोपाल का जीवन अनेक विशेषताओं से भरा पड़ा है। राजा से कुष्टी होना, समुद्र में गिरना, सूली पर चढ़ना आदि कितनी ही घटनाएं उसके जीवन में एक के बाद दूसरी प्रातो हैं जिससे उनका सारा जीवन नाटकीय