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________________ २६० राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व जनम महोब वली तिहां जोईइ । मर्म गर्म कल्मारक खोइई ॥ १४ ॥ विचारि बिचारि वोजि वारि किम नीकलते गर्भमली । उदारि उन्नत स्थूलत परिशात श्रवर कहु एक कलितफली । नर नरकावासी कम्मा नविन देण शीता सुरपति लक्ष्मण नरपति नवि काड्या दृष्टोतल घणा ।। १५ ।। बली नाल त्रुटि प्रायु खुटि फिमहं जीविते वली 1 जे सुफल आंनू सरस लांबु अनेथि हृष्टि कम भली उदर कमलि गरभ ज मलि नाल मार्ग सहलहि । पाप पाक नाल वा (स) कि गर्भ पातकर सहकहि ॥१६॥ रोषि रोपी रोपनि प्पि बाप व अन्येधि थी प्रन्यत्र लेता गरभ कुरण निषेधए || भ्रष्ट नष्ट ष्टांत दास्ती लोकनि थिर कारइ । वर वीरवाणी विचार करता तेति वली बारइ || १७|| रोप सम सहु माय जागु गर्भ फल सम साभलो | अथ यी अन्थ धरती कोरण कहिलो नीमलो ॥ दोइ लात दूषण पाप लक्षण जिननि संभारि | अभाखि पाम दाखि शास्त्र ते किम तारइ ||१८|| जिननाथ सबसि करण उपर खोल खोसि गोवालीया | असम साहस साम्य मुकी जिन्ह छू बंगालीया || बच रूप सरीर भेदी लीला सन क्रिम सुच्चइ । दोइ वीस परीसह प्रतिहि दुसह जिन्न कहो किम इ ॥ १९३॥ राज मूकी मुगती शंकी देवदूते किम घरि इन्द्र अपि थियापि शुरू होइ ले हम कर || मुद्र समता घरइ ममता यस्त्र बीटि सहु सुरिइ । हारि नामा अचेलभामा परिसह किम जिन मरण २२०॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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