________________
अविमान चौपई
. डोद तिवस घरगु वाणां वाजि
ससर सबद सदि छाजि । गहिर दो गाजि
- वेणा वसवि राजिसा
प्रागलि अपर नाचि सुरंगा, पामर द्वालि चंगा। देइय दान ए धार जिम गंगा; हीयलि हरष प्रभंगा।
साहेलडी० ।।५७॥
भेगल उपरि चहाज हो राजा, घरइ मान मन माहि ।। अबर राव मुज्ञ सम उन कोई, नयमाडे निम जिन चाहि ।।
__ माहेलडी० ॥५८
मान यंभ दीहि मद भाजि, लहल हि धजायए कड़ी। परिहरी कुजर पानु चान, धरउ मान मति घोडी ॥
साहेलडी० ।।५।।
समोसरग माहि कृष्णा पधारमा साथि संपरिवार । रयण सिंघासग बिठादीठा, सिवादेधी तरण्ठ मल्हार ।।
साल डी०१॥६॥
समुद्र विजय ए अबर बहू राजा. वसुदेय बलिभद्र हरषि । फरीय प्रदक्षरण कुष्ण सु नमोया, नयडे नेम जिननरषि ||
साहेलडी० ॥६॥
बस्तु
हरषीया यादव र मनह आगंदि । पुरषोतम पूजा च नंमिनाथ चलणे निरोपम । जल बंधन असत करि सार पुष्प वल परु अनोपम !! दीप धूप सविफल धरणा रचाय पूज धन होय । कर जोड़ी करि वीनती तु बलिमद्र वंधव साथी ।।६२।।
स्तवन करि बंधवसार, जेठउ बमिलभद्र' अनुज मोरार। कर संपुट जोडी अजुली, नेमिनाथ सनमुख संमली ॥३॥