SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 244
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व ----अथ ढाल श्रीजी-- देश दिशानी संग्या करु, दूर देवा गमन परिहरु । जिरिए नयर धर्म नवि कीजि, तिरिस नयर वासु न वसीजि ! देश वत्त' तम्हे उठी लेयो, गमन तणी मरयाद करेयो। दुषगा सहित भोग रहे टालु, कंद मूल प्रचार राल !! सेलर फूल सवे बीली फल, पत्र साफ विंगरण कालीगड ।। बोर महूजां प्रण जापयां फल, नीम फरेयो तम्हे जोब फल । धानसाल नां घोल कही जि, दिज बिहु पूठि नीम फरोजि । स्वाद चस्यां जे फूल्या धान, नाम नही ते मारणस खान ।। दीन सहित तम्हे ज्यालू करु, राति प्राहार सबि परिहरु । उपवास अथलु फल पामीज, पाणु फल दासन परीणि ।। एक बार बिघार जमीजइ, अरता फिरता नदि खाईजइ । बस्तु पाननी संख्या कीजि, फूल सचित्त टाली घालीजि ॥ . श्रण काल सामायक लेयो, मन र धानि ध्यान करेयो । आदमि चौदिश पोसु धरू, घरह तणा पातिक परिहरू । उत्तम पात्र मुनीश्वर जाण, श्रावक सध्यम पात्र बखाण ।। आहार ऊपध पोथी दोजह, अभयदान जिन पूजा कीजइ ।। धाडु दान सुपात्रां दीजि, परिवि फल अनंत लहीजइ । दान बुपात्रां फल नवि पावि, असर भूमि बीज व आदि । दया दान तम्हे बेयोसार, जिरणवर निबं का उचार ।। जिरावर भवननी सार करेज्यो, लक्ष्मीनु फल तम्हे लेज्यो ।। --वस्तु-- दमु इन्द्री दमु इन्द्री पंच छि चोर घर्भ रहन चोरी करीय नरग माहि सेईय मूकि। सबहु दुःखनी खाण जीय रोग सोक मंडार हूकि । जे तप खड़ग घरीय पुरुष इन्द्री. करि संघार । देवलोक सुख भोगवी ते तिरसि संसार |
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy