SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 241
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कतिपय लघु कृतियां लघु कृतियां और उद्धरण भट्टारक सकलकीर्त्ति (सं० १४४३-१४६६ ) सार सोखामणि रास ( पृष्ठ संख्या १-२१/१७ ) मवि जिावर वीर, सीखामणि कहिसु समरवि गोतम धीर, जिरावाणी पसरणे ॥१॥ लाल चुरासी माहि फिरं तु, मानव भव लीनु कुलवतु । इन्द्रयु निरामय देह, बुधि बिना विफल सहु एह ||२|| एक मनां गुरु वारिण सुगीजि, बुद्धि विवेक सही पामीजि । पढ पढाबु आगम सार सात तत्व सीखु सविचार || पढ कुशास्त्र में काने सुरपु नमोकार दिन रमणीय गुणु ॥१३॥ एक मन जिनवर भाराष्ट्र, स्वर्ग मुगति जिन हेला साधु । जाख सेष जे बीजा देव तिह तरणी नवि कीजे सेब ||४|| गुरु नियथ एक प्रामीजि, कुगुरु तरणी नदि सेवा कीजि । धर्मवंत ती संगति करु, पापी संगति तम्हे परिहरु ||५|| जीव दया एक धर्म करोजि, तु निश्चेि संसार तरीजि । भावक धर्म करु जंगिसार, नहि भुल्यु तम्हे संयम भार ||६|| धर्म प्रपंच रहित तम्हे करु, कुधर्म सबै दूरि परिहरु । जीवत माइ माप सुनेह, धर्म करावु रहित संदेह ||७|| मूयां पूठि जं कांई कीजि, ते सहूइ फोकि हारीजि । हट समकित पालु जगिसार, मूढ परंतु मूकु सविचार ॥८॥ रोग क्लेश उप्पना जागी, धर्म करावु शकति प्रभारणी । महल पूछ कहि नवि कीजि, करम तां फल नवि छूटीजि || ९ || प्राय मररण तम्हें दृढ होज्यो, वीक्ष्या अणसा वन्हि लेयो । धर्म करो निफल मनमांगु, मारमि भुगति क्षणि तम्हे लागु ॥१०॥ ॥
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy