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________________ २०८ राजस्थान के जैन संत-व्यक्तित्व एवं कृतित्व किम रे तोरण तम्हें माविया, करि समस्यु घणो नेहन रे । पशुभ देखी ने पाछा बल्या, स्यु ये विमास्यु मन रोहन रे ।।२।। इम नहीं मोजे रहा न होला, तम्हे बति मतुर सुजाणन रे। लोकह सार तन कीजोमे, छह न दीजिये निरवारिपन रे ||६ नेमिगीत कवि को अब तक जो ११ कृतियां उपलब्ध हो चुकी हैं उनमें से कुछ के नाम निम्न प्रकार है १. मरपालडागीत २. नेमिगीत २. नेभीश्वर गीत ४. लालपछेवडी गीत ५. गुरुगीत २५. विद्यासागर विद्यासागर भ० शुभचन्द्र के गुरु भ्राता ये जो भट्टारनः प्रमयचन्द्र के शिष्य थे । मे बलात्कारमण एवं सरस्वती गम्छ के साधु मे। विद्यासागर हिन्दी के अच्छे विद्वान् थे। इनकी प्रश्च तक 11) सोलह स्वप्न, (२) जिन अन्म महोत्सब, (३) सप्तव्यसन सवैप्या, (४) दर्शनाएमांग, (५) विषाणहार स्तोत्र भामा, । ६) भूपाल स्तोत्र भाषा, (७) रविवतकथा (८) पद्मावतीनीयोनति एवं (e) इन्द्रप्रभनीबीनती ये ६ रचनायें उपलब्ध हो चुकी है। इन्होंने कुछ पद भी मिले हैं जो भाव एवं भाषा की दृष्टि से प्रत्यधिक महत्वपूर्ण हैं । यहां दो रचनामों का परिचय दिया जा रहा है। जिन जन्म महोत्सव षट पद में तीर्थकर के जन्म पर होने वाले महोत्सव का पएन किया गया है। रचना में केवल १२ पञ्च है जो सबंग्या सन्द में हैं। रचनाकाल का कोई उल्लेख नहीं मिलता । रचना का प्रथम पद निम्न प्रकार है श्री जिनराज नो जन्म जाणा शुरराज जमा । वात वयणे कीर सार श्वेत बरावण ज्यावै ।। प्रति बयणे बसवंत दंत दंतेक सोबरः। सरोवर प्रति पानीस समलनिसीहे सुकर ,
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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