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________________ १७६ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतिस्व चाहिए कि इन मट्टारकों को भट्टारक सफल कोति की परम्परा के भट्टारक स्वीकार नहीं किया गया और भुवनकीत्ति को ही सकलकोत्ति का प्रथम शिष्य एवं प्रथम भट्टारक घोषित कर दिया गया। इन्हें भट्टारक पद पर संवत् १४६६ के पश्चात् किया भी समय कर दिया होगा। "i भुवनकोति को प्रांतरी ग्राम में भट्टारक पद पर सुशोभित किया गया | इस कार्य में संघवी सोमदास का प्रमुख हाथ था । "वा गांम अत्रोये संश्रवी सोमजी ने समस्त संघ मिली नं भट्टारक भुवनकीति थाप्या" मट्टारक पट्टावलि हूँगरपुर शास्त्र भंडार | X "छे रामस्त श्री संघ मली ने भांतरी नगर मध्ये संघवी सोमदास भट्टारक पदवी वनकति स्वामी बाप्या । भट्टारक पट्टावलि ऋषभदेव शास्त्र मंडार | A111170010463711181119IYEERANA 111 जूना देहरान सम्मुखनि सही करायो । पई धर्मकीत्ति ने पार्ट नोगांमाने संघ श्री विमलेन्द्र कीत्ति स्थापना करी ते वर्ष १२ पाट भोगच्यो । भट्टारक पट्टावली- डूंगरपुर शास्त्र भंडार x + + f स्वामी सकलकोलि ने पाटे धम्मंकोति स्वामी नौतनपुर संधे थाप्या । सागवाडा माहाता अंगारी आ कहावे हेता प्रथम प्रथम प्रसाद करायो श्री आधनाचनी । पीछे बोक्षा लीधो इती ते वर्ष २४ पाट भोगथ्यो पोताने हाथी प्रतिष्टाचार करि प्रासादानो पछे अंत समे समाधीमरण करता देहरा सामीनस करावी दी करे करानो सागवाडे । पछे स्वामी धर्मकीर्ति ने पाटे नौतनपुर ने संघ समस्त मिली ने वीमलेन्द्र कीर्ति आचार्य पद थाप्पा ते गोलालारनी ज्यात हती। ते स्वामी वीमलेन्द्रकीत्ति दक्षण पोहत कुंदनपुर प्रतिष्ठा करावा साद ते श्रीमलेन्द्रकोसि स्वामोरक्षण जे परो के परोक्ष थपा । स्वामी प्रष्टा प्रसावा वी ४ तथा ५ नागड मध्ये करि वर्ष १२ पाट भोगथ्यो। एतला लगेण आचारय बाट चास्या । + X -† भ० पट्टावली भ० यशःकीति शास्त्र भंडार ( ऋषभदेव )
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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