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________________ : आचार्य चंद्रकीत्ति जिनराय जी पालाय रे ॥४५॥ ए व्रत फल गिरता जो जो श्री जीव भवियरण तिहां जह भावज्ये, पालिग दुरे पूर्व छापो चौतीस प्रतिस अतिसय भमा, प्रतिहार्य वसु होस । चार चतुष्टय जिनवरा, ए खेतालीस पद जोय ॥ ४६ ॥ ॥ १५७ २. जयकुमार आख्यान यह कवि का सबसे बड़ा काव्य है जो ४ सर्गो में विभक्त है। 'जयकुमार' प्रथम तीर्थंकर 'म० ऋषभदेव' के पुत्र सम्राट भरत के सेनाध्यक्ष थे । इन्हीं जय कुमार का इसमें पूरा चरित्र वर्णित है । आख्यान वीर रस प्रधान है। इसकी रचना बारी नगर के १६६५ चैत्र शुक्ला दसमी के दिन समाप्त हुई थी । 'जयकुमार' को सम्राट भरत सेनाध्यक्ष पद पर नियुक्त करके शांति पूर्वक जीवन बिताने लगे जयकुमार ने अपने युद्ध कौशल से सारे साम्राज्य पर प्रखण्ड शासन स्थापित किया 1 वे सौन्दर्य के खजाने थे। एक बार वाराणसी के राजा 'अकम्पन' ने अपनी पुत्री 'सुलोचना' के विवाह के लिए स्वयम्वर का आयोजन किया । स्वयम्बर में जयकुमार भी सम्मिलित हुए। इसी स्वयम्बर में 'सम्राट भरत' के एक राजकुमार 'अकंकीर्ति' भी गये थे, लेकिन जब 'सुलोचना' ने जयकुमार के अकीति एवं जयकुमार में गले में माला पहना दी, तो वह अत्यन्त क्रोधित हुये । युद्ध हुआ और अन्त में जयकुमार का सुलोचना के साथ विवाह हो गया 1 इस 'आख्यान' के प्रथम अधिकार में 'जयकुमार - सुलोचना-विवाह' का वन है। दूसरे और तीसरे अधिकार में जयकुमार के पूर्व भवों का वर्णन और चतुर्थ एवं अन्तिम अधिकार में जयकुमार के निर्वाण प्राप्ति का वर्णन किया गया है। 'स्थान' में वीर रस, श्रृंगार रस एवं शान्त रस का प्राधान्य है । इसकी भाषा राजस्थानी डिंगल है । यद्यपि रचना स्थान बारडोली नगर है, लेकिन गुजराती दशब्दों का बहुत ही कम प्रयोग किया गया है- इससे कवि का राजस्थानी प्रेम झलकता है । 'सुलोचना' स्वयम्बर में वरमाला हाथ में लेकर जब भाती है, तो उस समय उसकी कितनी सुन्दरता थी, इसका कवि के शब्दों में ही अवलोकन कोजिए -
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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