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________________ राजस्थान के जन संस-घ्यक्तिस्व एवं कृतित्व थे । सांगानेर संभवतः उनका अन्तिम स्थान था, जहां से वे अन्य स्थान पर नहीं गये होगें । जब वह सांगानेर पाये थे, तो वह नगर धन-धान्य से परिपूर्ण था। उनके समय में भारस पर सम्राट अकबर का शासन था तथा सामेर का राज्य राजा भगवन्तदास के हाथ में था। इसलिए राज्य में अपेक्षाकृत शान्ति थी। जैनों का अच्छा प्रभाव मी कवि को सांगानेर में जीवन पर्यन्त ठहरने में सहायक रहा होगा । उनने यहां आकर आगे पाने वाले विद्वानों के लिए काव्य रचना का मार्ग खोल दिया धीर १७ वीं शताब्धि के पश्चात् तत्कालीन घामेर एवं जयपुर राज्य में साहित्य की ओर जनता की रुचि बढायी । यह अधिकांश पाठकों से छपी नहीं है। अझ रायमल्ल' के पश्चात् राजस्थान के इस भाग में विशेष रूप से साहित्यिक जाग्नति हुई । पापढे राजमहल भी इन्हीं के समकालीन थे । इसके पश्चात् १७ वी, १८ वीं एवं १९ वीं शताब्दी में एक के पश्चात् दुसरा कवि एवं विद्वान होते रहे, और साहित्य-रचना की पावन-धारा में बराबर वृद्धि होती रही और वह महा पं० टेडरमल जी के समय में यह नदी के रूप में प्रवाहित होने लगी। इस प्रकार या रायमरुल का पूरे राजस्थान में हिन्दी भाषा की रचनाओं की वृद्धि में जो योगदान रहा, वह सदा स्मरणीय रहेगा।
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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