SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 135
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सन्त शिरोमणि बोरचन्द्र १०६ रूपि रभा सुतिलोत्तमा, उत्तम प्रगि आचार । परणितु पुण्यवंती तेहनि, नेह करी नेमिकुमार ॥२२॥ 'फाग' के अन्य सुन्दरतम वर्णनों में राजुल-विलाप भी एक उल्लेखनीय स्थल है । वनों के पढ़ने के पश्चात् पाठकों के स्वयमेव आंसू बह निकलते हैं । इस वर्णन का एक स्थल देखिये: कर काम ककरण मोड़ती, तोड़ती मिरिणमिहार । लूचती केश-कलाप, विलाप करि अनिवार ।।७।। नयरिण नीर काजलि गलि, टलबलि भामिनी भूर । किम करू कहि रे साहेलड़ी, विहि नडि गयो मझनाह ॥७१।। काव्य के अन्त में कवि ने जो अपना परिचय दिया है, यह निम्न प्रकार है:श्री मूल संधि मह्मिा निलो, जती तिलो श्री विद्यानन्द । सूरी श्री मल्लिभूषण जयो, जयो सूरी लक्ष्मीचन्द ।।१३५।। जयो सूरी श्री वीरचन्द गृरिंगद, रच्यो जिणि फाग । गांता साभलता ए मनोहर, सुखकर श्री वीतराग ।।१३६।। जीहां मेदिनी मेरु महीधर, द्वीप सायर जगि जाम । तिहा लगि ए 'पदो, न दो सदा फाग ए ताम ।।१३॥ रचनाकाल कषि ने फाग के रचनाकाल का कहीं भी उल्लेख नहीं किया है। लेकिन यह रचना सं० १६०० के पहिले की मालूम होती है। २. जम्बूस्वामी वेलि यह कवि की दूसरी रचना है । इसकी एक अपूर्ण प्रति लेखक को उदयपुर (राजस्थान) के खण्डेलवाल जिन-मन्दिर के शास्त्र भंडार में उपलब्ध हुई थी। वह एक गुटके में संग्रहीत है । प्रति जीर्ण अवस्था में है और उसके कितने ही स्थलों से अक्षर मिट गए हैं। इसमें अन्तिम केवली जम्बूस्वामी का जीवन परित परिणत है। जम्बूस्वामी का जीवन जैन ऋषियों के लिए प्राकर्षक रहा है। इसलिए संस्कृत, अपभ्रश, हिन्दी, राजस्थानी एवं अन्य भाषाघों में उनके जीवन पर विविध कृतियां उपलब्ध होती हैं । 'वेलि' की माश गुजराती मिश्रित राजस्थानी है, जिस पर डिगल का प्रभाव
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy