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________________ भट्टारक शुभचन्द्र हिन्दी कृतियां संस्कृत के समान हिन्दी में भी 'शुभचन्द्र' की अच्छी गति थी । भम्र तक कवि की ७ से भी अधिक लघु रचनाएं उपलब्ध हो चुकी हैं और राजस्थान एवं गुजरात के शास्त्र भण्डारों में संभवतः और भी रचनाएं उपलब्ध हो जायें । १ महावीर छन्द- यह महावीर स्वामी के स्तवन के रूप में है। पूरे स्तवन में २७ पद्य हैं। स्तवन की भाषा संस्कृत - प्रभावित है तथा काव्यत्व पूर्ण है। आदि और अन्तिम भाग देखिये :--- आदि भाग "I प्रणमीय वीर बिष्ट जरा रे जा, मदमइ मान महाभय भंजरण | गुण गण वर्णन करीय बखार, यतो जण योगीय जोबन जाए । मेह गेह गुह देश विदेहह, कुंडलपुर वर पुहवि सुदेहह । सिद्धि वृद्धि वर्द्ध के सिद्धारथ, नरवर पूजित नरपति सारथ ॥ अन्तिम भाग: १०१ सिद्धारथ सुत सिद्धि वृद्धि वांछित वर दायक, प्रियकारिणी वर पुत्र सप्तहस्तोन्नत कायक । द्वासप्तति पर वर्ष आयु सिहां मंडित, चामीकर वर वणं शरण गोतम यती मंडित । गर्भ दोष दूषण रहित शुद्ध गर्भ कल्याण करण, 'शुभचन्द्र' सूरि सेवित सदा पुहवि पाप पंह हरण || २. विजयकोति छन् यह कवि की ऐतिहासिक कृति है । कवि द्वारा जिसमें अपने गुरू 'म० विजयकांति' की प्रशंसा में उक्त छन्द लिखा गया है। इसमें २६ पद्म हैं- जिसमें अट्टारक विजयकीति को कामदेव ने किस प्रकार पराजित करना चाहा और उसमें उसे स्वयं को किस प्रकार मुंह की खानी पड़ी इसका अच्छा वर्णन दे रखा है। जनसाहित्य में ऐसी बहुत कम कृतियां हैं जिनमें किसी एक सन्त के जीवन पर कोई रूपक काव्य लिखा गया हो । रूपक काव्य की भाषा एवं वर्णन शैली दोनों ही प्रच्छी हैं। इसके नायक है 'भ० विजयकीत्ति' और प्रतिनायक कामदेव हैं। मत्सर, मद, माया, सप्त व्यसन बादि कामदेव की सेना के सैनिक थे तथा क्रोध मान, माया और लोभ उसकी सेना
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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