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________________ ६ राजस्थान के जैन संत : व्यक्तित्व एवं कृतित्व जातीय श्रावक साह हीरा राजू आदि ने प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न करवाया था । 9 साहित्यिक सेवा शुभचन्द्र ज्ञान के सागर एवं अनेक विद्याओं में पारंगत थे । वे वक्तृत्व कला में पटु तथा आकर्षक व्यक्तित्व वाले सन्त थे । इन्होंने जो साहित्य सेवा अपने जीवन में की थी वह इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखने योग्य है। अपने संघ की व्यवस्था तथा धर्मोपदेश एवं ग्रात्म साधना के अतिरिक्त जो भी समय इन्हें मिला उसका साहित्य निर्माण में ही सदुपयोग किया गया। वे स्वयं ग्रन्थों का निर्माण करते, शास्त्र भण्डारों की सम्हाल करते, अपने शिष्यों से प्रतिलिपियां करवाते, तथा जगह २ शास्त्रागार खोलने की व्यवस्था कराते थे । वास्तव में ऐसे ही सन्तों के सदुप्रयास से भारतीय साहित्य सुरक्षित रह सका है। पाण्डवपुराण इनकी संवत् १६०८ की कृति है । उस समय साहित्यिक जगत में इनकी ख्याति चरमोत्कर्ष पर यो समाज में इनकी कृतियां प्रिय बन चुकी थी और उनका अत्यधिक प्रचार हो चुका था । संवत् १६०८ तक जिन कृतियों को इन्होंने समाप्त कर लिया था उनमें (१) चन्द्रप्रभ वरित्र (२) श्रेणिक चरित्र (३) जीवंधर चरित्र (४) चन्दना कथा ( ५ ) श्रष्टाह्निका कथा ( ६ ) सद्वृत्तिशालिनी (७) तीन चौबीसी पूजा (८) सिद्धचक्र पूजा (१) सरस्वती पूजा (१०) चिंतामणिपूजा (११) कर्मदहन पूजा (१२) पार्श्वनाथ काव्य पंजिका (१३) पर लोद्यापन (१४) चारि शुद्धिविधान (१५) संदायवदन विदारण (१६) अपशब्द खण्ड ( १७ ) तत्व निर्णय (१८) स्वरुप संबोधन वृत्ति (१९) अध्यात्म तरंगिरणी (२०) चिंतामणि प्राकृत व्याकरण (२१) अंगप्रजप्ति आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। उक्त साहित्य भ० शुभचन्द्र के कठोर परिश्रम एवं त्याग का फल है। इसके पश्चात इन्होंने और भी कृतियां लिखी ।" संस्कृत रचनाओं के अतिरिक्त इनकी कुछ रचनायें हिन्दी में भी उपलब्ध होती हैं । लेकिन कवि ने पाण्डव पुराण में उनका कोई उल्लेख नहीं किया www १. संवत् १५८१ वर्ष पोष वदी १३ शुक्र श्री मूलसंघे सरस्वतीगच्छे बलात्कारगणे श्री कुन्दकुन्दाचार्यान्वये भ० श्री ज्ञानभूषण सरपट्टे श्री भ० विजयकीति तत्पट्टे भ० श्री शुभचन्द्र गुरूपदेशात् बड जाति साह हीरा भा० राजू सुत सं० तारा द्वि० भार्या पोई सुत सं० माता भार्या होरा वे........... भा० नारंग के भ्र० एनपाल भा० रखभावास नित्यं प्रणमति । विराला दे सुत २. विस्तृत प्रशास्ति के लिए देखिये लेखक द्वारा सम्पादित प्रशास्ति संग्रह पृष्ठ संख्या ७
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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