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________________ ब्रह्म बूच राज किन्तु इससे भी अधिक व्यंग निम्न पथ में देखिए जिम तर आपण खूप सहि, अवरह छांह कराई लिज इसु काया संग ते मोखही जीवहा जाए 1७३॥ रचना के कुछ सुन्दर पद्य पाठकों के अवलोकनार्थ दिए जा रहे हैं जिउ समिमंड रमणिका दिन का मण्डणु भार । तिम चेतन का मण्डरा, यह मुद्गल तू जाण ॥७८॥ X X काय कलेवरु बसि सुहु, जततु करन्तिहि जा । जिन जिव पाचे तूबड़ी, तिव तिथ अति करवाई ॥८१॥ X X फूलु मरह परमलु जीवद्द, तिसु जाणे सह कोई । हंसु चल काया रहइ, किवस बराबर होइ ||८३ || X X X X X काया की निंदा करइ, आपु न देखइ जोइ । जिउ जिउ भीज कांवली, तिज तिज भारी होइ X X जिय विगु पुद्गल ना रहे कहिया आदि अनादि । छह खंड भोगे चक्कर्ष, काया के परसादि ॥ ६६ ॥ X X X x X X X कासु पुकार किसु कहउ, हीयडे मीतरि बाहु । जे गुण होवहि गौरडो, तब बन छोडे ताहु X ט X X X मोती उपमा सीप महि, विद्धि माथावे लोइ । तिउ जी काया संगते, सिजपुरि बासा होइ ॥ १०४ ॥ X X कालु पंच मारुद्द यहु, चित्तु सुखुन मोखु हुई, दोन X X X 4 X न किसही ठांइ । खोबहि काए । ११४ ।। X X X X ७७
SR No.090391
Book TitleRajasthan ke Jain Sant Vyaktitva evam Krititva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKasturchand Kasliwal
PublisherGendilal Shah Jaipur
Publication Year
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, & History
File Size5 MB
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