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हैं अच्छा प्रचार हुमा, उन पर अनेकों संस्कृत एवं लोक भाषाओं में टीकाएं की गई। प्रस्तुत पुष्पमाला ग्रन्थ उन्हीं में से एक है।
जिसकी रचना प्रश्नवाइन कुलके हर्षपुरीय गच्छके मधारीव हेमचन्द्रसरिने प्राकृत ५.५ गाथाओंमें की है। और सं. ११७५ में उन्होंने स्वयं इस ग्रन्थ पर संस्कृतमें १३८६८ श्लोक परिमित विशद् टीका बनाई। वह ग्रन्थ मूल रूपमें जैन श्रेयस्कर मंडल, महेसाशासे सन १९११ में प्रकाशित हुआ था। इसके २५ वर्षे बाद उक्त अन्य स्वोपक्ष वृत्ति के साथ श्रुषभदेव केशरीमल संस्था, रतलामसे प्रकाशित हुआ था। उसके सम्पादक सुप्रसिद्ध जैनागमों के सम्पादक सागरानन्दसूरि थे। उन्होंने | इसके उपोद्घातमें प्रन्थ के महत्व और विषयोंका सुन्दर परिचय दिया ही है अतः उसके सम्बन्ध में यहां नहीं लिखा जा रहा है।
पुष्पमालाके रचयिता हेमचन्द्रमूरिने इस ग्रन्थका नाम उपदेशमाला व पुष्पमाला दोनों दिये हैं, यद्यपि प्रधानरूपसे उपदेशमाला नामही उनको अभीष्ट रहा है पर इसी नामका अन्य प्राचीन ग्रन्थ प्रसिद्ध होनेसे उससे भिन्नता सूचक पुष्पमाला नामही अधिक प्रसिद्ध हुआ। अन्य कर्ता आचार्य अपने समयके बहुत बड़े विद्वान थे। ननके रचित अन्य अनेक मौलिक व टीकामन्य प्राप्त है। वनका विशेष परिचय पं. दलसुख मालवणीवाने 'गणधरवाद' नामक प्रन्धमें दिया है अतः यहां दोहराना श्रावश्यक नहीं समझा । केवल प्रस्तुत लघु टीकाके कोका परिचयही आगे दिया जा रहा है।
प्रस्तुत पुष्पमाला लधुवृत्ति, मूल अन्य कारकी स्वोपक्ष बृहत् टीका परही आधारित है। वह दीका बहुत विस्तृत होनेसे पढ़ने में बहुत समय लगता, इससे अन्धके प्रचार व पठन पाठनमें असुविधाका अनुभव करके यह लघुनि खरतर गच्छके साधुसोमगणिने ५३०० श्लोक परिमित बनाई। इसकी रचना सं. १५१२ में अहमदाबाद के खीमराजकी शालामें हुई। इस
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