SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४२ (२) थ्यंजनपर्याय--जो समुदाय रूप स्थूल ( व्यक्त होती है अनेक समयकी पर्यायोंके मेल रूप है । बह विभावरूप व स्वभावरूप दो सरहकी होती है, उनमेसे भेद है। नोट---यह विभाव व्यंजनपर्याय, जीव और पुद्गल दो हो द्रव्योंमें होती है शेष चार द्रव्योंमें नहीं होती। (आलापपद्धतिमें देखो) निश्चयसे जीव द्रव्य के उक्त चार लक्षण ( स्वरूप) नेतमत्व, स्पर्शादिभिन्नत्त्व, गुणपर्ययवस्व, उत्पादध्ययनौव्यत्त्व हैं जो आत्मभूत लक्षण हैं (अभिन्न प्रदेशो हैं ) और कोई २ लक्षण अनात्मभूत { भिन्न प्रदेशी ) भी होता है। उसका नाम व्यवहारी लक्षण है जो संयोगावस्था में होता है 1 अभिन्मप्रदेशी लक्षणका नाम निश्चयलक्षण है ऐसा जानना। सम्यग्दृष्टिका लक्षण जो आत्मा ( जीवद्रव्य ) के उक्त प्रकार अनेकान्त स्वरूपको निश्चयनघसे जानता व मानता है वही सम्यग्दृष्टि होता है मग नहीं । तदुक्तं जो सच्चमणेयन्स णियमा सहदि सत्तभंगहि । लोयाण पाहसदो ववहारपवत्तणटुं च ॥३१॥ ___ स्वा का अमु० अर्थ-जो जीव सातमंगरूप ( भेदरूप अनेक धर्मरूप) अनेकान्तमय बस्तुको यथार्थ जानता है व श्रदान करता है वही सम्यग्दष्टि होता है यह नियम है तथा जो जीव अनेकान्तमय तत्वको नहीं समझता बह मिथ्यादष्टि होता है। और ऐसा अनेकान्तका ज्ञाता जीव हो संयोगी पर्यायमें रहता हआ अच्छी तरह लोकबहार चला सकता है कोई विघ्न-बाधा नहीं आती यह महान् लाभ होता है अस्तु । सातभंगोंके नाम (१) स्यादस्ति (२) स्यान्नास्ति (३) स्यादस्तिनास्ति (४) स्यादवक्तव्य (५ स्यादस्ति अवक्तब्ध (६) स्थान्नास्ति अवक्तव्य (७) स्यादस्तिनास्ति अवक्तव्य । ये सात धर्म वस्तुमें पाये जाते हैं, जो प्रश्न होने पर बताये जाते हैं। और भी ४७ शक्तियों तक विचार किया जाता है । ज्ञानकी महिमा अपरंपार है ऐसा समझना । सम्भंगीका स्वरूप एकस्मिन्नतिरोधेन: प्रमाणनयवाक्यतः । सदादिकरूपना सा च सप्तभंगीत समता .. अर्थ-प्रमाणको अपेक्षा ( आलम्बन । से या नयकी अपेक्षासे एक ही पदार्थमै चिरोधरहित अर्थात् स्थाद्वादका सहारा लेकर जो सत्, असत्' आदि सात प्रकारकी कल्पना ( विकल्प ) की
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy