SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम अध्याय जीव द्रव्यका लक्षण अस्ति पुरुषाश्चदात्मा विवर्जितः स्पर्शरसगन्धवर्णैः । गुणपर्ययसमवेतः समाहितः समुदयव्ययधौव्यैः ॥१॥ पद्य आतम अथवा पुरुष नाम है, जीवद्रव्यका तुम जानो। निश्चयरूप कहा है उसका, उसको भी तुम पहिचानो। है चैतन्यरूप अ6 परसे भिन्न रसादिक-वर्जित है। गुणपश्रय संयुक्त टोयकर, उत्पादिक प्रश्न अर्जित है ॥६॥ ___अन्वय अर्थ-आचार्य निश्चयनयसे जीवद्रव्यका स्वरूप बताते हैं कि [ पुरुनः ] जीव द्रव्य विदामा ] चैतन्यस्वरूप ( दर्शनजानवाला ) और [ स्पर्शरसगन्धवणे: विवर्जितः ] रूप रस गन्ध स्पर्श, इन पुद्गल के मुणोंसे रहित ( परसे भिन्न ) एवं [ गुगधश्रयासमवेतः ] गुण और पर्यायोंके साथ अभिन्न तादात्म्यरूप, एवं [ समुदयव्ययधौव्यैः समाहितः ] उत्पादव्ययध्रौव्यरूप वस्तुके स्वभाव सहित । अस्ति ] है । अर्थात् एकत्त्व विभक्त रूप जीव द्रव्य है----अन्यप्रकार नहीं है 11९|| भावार्थ-लक्षण या स्वरूप दो तरहका होता है (१) निश्चयरूप अर्थात् असली ( भूतार्थ) और (२} ब्यवहाररूप ( नकली कामचलाऊ अभूतार्थ )। तदनुसार इस श्लोक द्वारा जीवद्रव्यका असाधारण ( आत्मभूत ) असली स्वरूप बताया गया है जो अन्य द्रव्योंमें नहीं पाया जाता, यह विकाल जीवके साथ रहता है, कभी जीवसे भिन्न नहीं रहता । जैसे कि चेतना गुण जीवद्रव्यका मुख्य गुण है उसके साथ जीवका अकालिक सम्बन्ध है और उसके साथ व्याप्यव्यापक सम्बन्ध भी है अतएव उसके साथ जीयका एकत्व है। यद्यपि चेतनाके तीन भेद किये गये हैं-(१) ज्ञानचेतना .(२). कर्मचेतना और (३) कर्मफल चेतना । परन्तु कार्य, वेतनाका एक जानना ही है । विषयभेदसे उक्त तीन भेद किये गये हैं या जो अपनेको खुद जाने ( स्वसंवेदन या आत्मसंवेदन करे अनुभवे ) १. . अरसमरूपमगंध अन्वतं घेदणागूणभराई । जाण अलिंगगणं जोत्रमाणसिंमाणं ।। -समयसार ४९ अन्येभ्यो श्यतिरिक्तमात्मनियतं बिभ्रत्यथरवस्तुतामाधानोज्नशून्यमेतदमलं, ज्ञान तथास्थितम् । मध्यावन्तविभागमुक्तसहजस्फारप्रभाभास्वरः शुद्धज्ञानधनो यथास्य महिमा नित्योदितस्तिष्ठति ॥२३५।। समयसार कलश -2074vinti zhz374172 र
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy