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________________ শিল্প দিক্ষ नोट---इस श्लोकमें 'षणमासमेक' यह पद कुछ संदिग्ध मालूम पड़ता है, वह कालमर्यादा सूचक नहीं होना चाहिये-इतना लम्बा काल आत्मोपलब्धिके लिए नहीं हो सकता और यह निश्चित कैसे किया गया इत्यादि प्रश्न होता है अतएव 'षटमास्य' पद रखनेसे 'षटम्+आस्य' छह कारक याने छह प्रकारके विकल्पोंको हटाकर-एकको याने शुद्धस्वरूप एकत्व विभक्तको देख ( पश्य ) यह सुन्दर घटित होता है बिचार किया जाय, किम्बहुना । जिस जीवने अपने जीवनमें और सब प्राप्त किया लेकिन सम्यग्दर्शनको प्राप्त नहीं किया, उसने कुछ नहीं प्रास किया वह दरिद्री ही बना रहा क्योंकि जीवन में सबसे उत्तम रत्न चिन्तामणि 'सम्यग्दर्शन' ही है, उसकी प्राप्ति बिना जीवन निष्फल है। उसके बिना संसारके दुःख नहीं छूटते । अतएव जैसे बने तैसे सम्यग्दर्शनकी प्राप्ति अवश्य करना चाहिये, जीवनका यही सार है, अस्तु ।।२२५॥ भादों सुदी १४ सोमवार सन् १९६३ विक्रम संवत् २०२२ में भाषा-टीका पूर्ण हुई । शहर सागर म०प्र०, भाषाकार-मुन्नालाल रांचेलीय । cassositeS i ddlertisiridesi Hashma RRC ३. ईस्वी सन् १९६३ ॥
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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