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________________ पुरुषार्थमुपाथ frame शुद्धवस्तुका ही आलम्बन ग्रहण करता है। इसी लिये वह शुद्धको अशुद्ध में नहीं मिलाता, खालिश रखता है। किन्तु खाली व्यवहारका ज्ञाता किसrat कथन या उपदेश देता है, अतएव वह हितकारी मार्गदर्शक नहीं है, किन्तु वह हेय है । अतः निश्चय व्यवहार या मुख्य गौणका ज्ञाता होना अनिवार्य है । ain अनेकान्ता २२ व्यवहारनयसे धर्म सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्ररूप तीन तरह का है। विभाव ( मिथ्यात्वादि अधर्म ) का शत्रु ( विपक्षी ) है और स्वभाव ( सम्यग्दर्शनादि सुधर्म ) का मित्र है । तथा निश्चयन धर्मं वीतरागतारूप होनेसे अनुभवरूप है अर्थात् किसीका न शत्रु है न किसी का मित्र है किन्तु आत्मरूप है, इसी प्रकार धर्म दुःखहर्ता व सुखकर्त्ता या संसारहर्त्ता व मोक्ष कर्त्ता है इत्यादि अनेकान्तता उसमें पाई जाती है— उसका जानना अनिवार्य है ॥ ४ ॥ आचार्य निश्चय और व्यवहारका स्वरूप और नामान्तर बतलाते हैं जिनमें बहुधा संसारी जीव भूले हुए हैं निश्चयमिह भूतार्थं व्यवहारं वर्णयन्त्यभूतार्थम् । भूतार्थबोधविमुखः प्रायः सर्वोऽपि संसारः ॥ ५ ॥ पथ रूपको fear से, कल्पितको व्यवहार कहा । संसारीजन भूल रहे हैं, भेद न जानत उनमें ! ये जन कर सकते हैं मिज अह पर काम जहाँ । उसके खातिर करना होगा ज्ञान उभवका प्रथम यहाँ ॥ ५ ॥ अन्ययअर्थ- गणवरादिक आचार्य कहते हैं कि [ इह ] परमागममें या लोकमें [ भूतार्थ farai वर्णयन्ति ] भूतार्थका नाम निश्चय समझना अर्थात् जो नय, सत्य या यथार्थताको बतावे या कहे उसको निश्चयनय जानना और [ अभूतार्थं व्यवहारं वयन्ति ] अभूतार्थका नाम व्यवहार समझना अर्थात् जो नय, असत्य या अयथार्थताको बतावे या कहे उसको व्यवहार नय समझना चाहिये । किन्तु [ प्रायः सर्वोsपि संसारः ] देखा जाता है कि बहुधा ( अधिकतर ) संसारके प्राणी [ भूतार्थबोधविमुखः ] निश्चयके ज्ञानसे रहित हो रहे हैं अर्थात् उनको निदचयका ज्ञान नहीं है, केवल व्यवहारका ज्ञान है अतएव वे अज्ञानी हैं यह स्वेद की बात है ॥ ५ ॥ भावार्थ---यथार्थ तत्त्वज्ञानके बिना जीवन निष्फल है चाहे वह देवेन्द्र, नरेन्द्र, नागेन्द्र कोई भी हो, क्योंकि वह कभी संसारसे पार नहीं हो सकता, न उनकी अभिलाषा पूरी हो सकती १. असत्य | २. कष्ट या दुःखकी बात । ३. संसारमें । ४. कर्म भूमिमें !
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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