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________________ ७६ पुरुषार्थसिमपाय फलस्वरूप निश्चयष्टिः स्वयमग्रम जान बन्धो न में स्यात् इत्युत्तामलकवदना: शगिणोऽध्यावन्ति । न हि सिध्यन्ति ज्ञाम शून्याः ते हि अत्यम्पा: निश्चयव्यवहारज्ञानरहिसाः बावका वसकाः ॥ इति ।। आचार्य कहते हैं कि सिर्फ बाह्य व्यापार क्रियाकांडके छोड़ बने मात्रसे कोई निश्चययावलंबी और शुद्ध अहिंसक । धर्मात्मा) नहीं हो सकता है क्योंकि उसके विरुद्ध फल ( कार्य) को देखने में आता है। यथा-- अविधायापि हि हिंसा हिंसाफलभाजनं भवत्येकः । कृत्वाप्यरो हिंसा हिंसाफलभाजनं न स्यात् ॥५१॥ * पछ हिंसानिया न करने पर मी, कोई हिंसा कल पाता। कोई सिंग सर पर , पाल पास फल मिलसा परिणामों से नहीं कियास फल मिलता। है व्यभिचार क्रिया के साथ ही, नहि परिणाम व्या खोता ।।५१॥ ___ अन्वय अर्थ-आचार्य कहते हैं कि [ एकः हि हिंसा अधिशयापि हिंसाफलभाजनं भवति ] निदचयसे ऐसा होता व देखा जाता है कि हिंसा क्रिया (परजीचका घात न करने पर भी, अर्थात बाह्य प्रवृत्ति बन्द कर देने पर भी कोई हिंसाका फल भोगता है अर्थात् विना किये फल या दंड पाता है । इसका कारण जीवके भाव हैं ) तथा [ अपरः हिंसा कृत्वा हिंसा फलभाजने न स्यात् ] कोई जीव ऐसा होता है कि हिंसा करके भी ( परजीवका घात करके भी) हिंसाके फलको नहीं पाता, अर्थात् उसके दंडको नहीं भोगता ( नरकनिगोदादि पर्याय नहीं पाता ) । इसका कारण भी जहाँ जीवके परिणाम ही हैं, क्रिया नहीं है। फलतः जहाँ सर्वोत्कृष्ट 'अहिंसा पाई जाती है। धर्म, है जिसमें जीवहिंसा व विषय-कषायको पुष्टि नहीं। शेष सब अधर्म है ॥५१॥ भावार्थ-हिंसा व अहिंसा निश्चय और व्यवहारके भेदसे दो तरहकी होती है व्यवहार में हिंसा, परजीवके प्राणघात होनेसे मानी जाती है किन्तु निश्चयमें, परजीवको मारनेका इरादा { संकल्प या क्रोधादि ) करने पर क्रोधादिरूष ही हिंसा ( स्वभावका घातरूप ) मानो आती है । इसी तरह विकारी भावोंके न होनेसे स्वभावका धास नहीं होता, तब वह अहिंसक माना जाता है और कदाचित् विकारीभाव न होनेके समय यदि स्वभावतः होने वाली शारीरिक क्रिया १. अविनाभाव-जैसा भाव होता है वैसा फल मिलता है, इसमें व्यभिचार नहीं होता। परन्तु क्रिया के साथ व्यभिचार हो जाता है क्योंकि उसके साथ व्याप्ति नहीं मिलली, यह तात्पर्य है।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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