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________________ लिए ) स्पष्ट वैराग्य में प्रतिज्ञा । त्याग ) करना ही चाहिये। तभी कल्याण ( भलाई ) होना संभव है, अन्यथा नहीं, ऐसा खुलासा जानना। लेकिन यह कार्य सब पक्की नींवके साथ होना चाहिए, किम्बहुना। रुचि या रागको छोड़ना ( अरुचि करना ) सर्पको भगाने के समान है और परद्रव्यका त्याग करना वामीको मिटाने के समान है। अतएव दोनों के अभाव हो जाने पर ही आत्मा निर्भय और स्थिर होता है ब सुखका अनुभव करता है। फलतः आत्मा बलवान है, अत: उसको पुरुषार्थ बनाम बलका प्रयोग करना ही चाहिए, बली जीव कभी निर्बल बगके जीवन नहीं बिता सकता वह अपने बलका प्रदर्शन हर तरहसे करता है। यदि बली होकर कोई जीव पुरुषार्थ न करे तो मानो वह अपने बलको लजा रहा है वह कायर और संसारी है। अतएव पुरुषार्थ रहित । पुरुषार्थहीन ) कभी नहीं होना चाहिए यह उपदेश है, वह भी उत्तम पुरुषार्थ करे, यह ज्ञानीका कर्तव्य है इत्यादि । पुरुषार्थ करनेका भाव ( कषाय । संयोगी पर्यायमें स्वयं होता है.... कर्मधारा बहतो है) । परन्तु उस समय भी वह शानदष्टि रखता है। अतएव पुरुषार्थ को वह साध्यको सिद्धिमें निमित्त कारण हो समझता है, उपादान कारण नहीं समझता। इसके सिवाय पुरुषार्थ करनेसे एकान्तदष्टि ( अकेले रमान पर है. if; हो जाती है त् अनेकान्तदृष्टि सिद्ध होती है कि उपादान ब निमित्त दोनों कारण कार्यको सिद्धिमै आवश्यक होते हैं, एक कारण नहीं इत्यादि ।।४८ll आचार्य निश्चयनय और व्यवहारनपसे हिंसा व अहिंसाका निर्धार करते हैं। । अन्तिम निष्कर्ष ) सूक्ष्मापि न खलु हिंसा परवस्तुनिबंधना भवति पुंसः । हिंसायतननिवृत्तिः परिणामविशुद्धये सदपि कार्या ॥४९|| पद्य परजीवोंके धातमात्रसे, हिंसा रंच ने लगती है। हिंसा होती आमधात से निमय मय बतलाती है । फिर भी शुभभावों के हेतु, पर हिंसाको सजना है। स्याग आयतन या जु करना, अहिंसा ध्यबाहर पलना है ।।४।। अन्वय अर्थ---आचार्य कहते हैं कि [ बल पुसः परत्रस्तुनिबन्धमा सूक्ष्मापि हिंसा न भवनि ] निश्चयनय से जीव ( आत्मा ) को पर पदार्थके निमित्तरी अर्थात् उसके विधात ( हानि या क्षय) १. निमित्त या सम्बन्धसे । २. अधिकरण या आधार, जिसकी हिंसा होती है वह वस्तु ( हिस्य )। ३. त्यागना-बचाना-रक्षा करना । ४, शुभ परिणाम या परिणतिके लिए । दयाभाव लिए ।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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