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________________ पुरुषार्थसिधुपाय प्रत्येक कार्य नदि पदार्थको यि, बिना कारण ( उपादान या निमित्तके अभावमें) नहीं हो सकती ऐसा नियम है, तब सम्यग्दर्शन व सम्यग्ज्ञान ये भी कार्य पर्याएं हैं, अतः उनके होने में भी कारण चाहिये। तदनुसार, सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञानके होने में निमित्त कारण बनता है और सम्यग्दर्शनमें, सम्यक्श्रद्धान कारण पड़ता है किन्तु कारण शून्य कोई नहीं है, ऐसा सिद्धान्त समझना चाहिये, द्वीप व प्रकाशका दृष्टान्त उपयुक्त है इत्ति ।।३४।। आचार्य सम्यग्ज्ञानका स्वतन्त्र लक्षण बताते हैं ( अन्तनिहित भेद व आठ जङ्ग सहित ) कर्तव्योऽध्यवसायः सदनेकान्तात्मकेषु तत्वेषु । संशय विपर्यायानध्यवसायविविक्त मात्मरूपं तत् ।।३५।। ना READE अनेकान्तमय द्रव्यों में जो अध्यवसाय उपजता है। सम्बरझाम नाम है उसका, संशयादि विन होता है। भास्माकर वह रूप कहा है, शाम बिना नहिं मातम है। ज्ञान प्राण भातमका जानी, असः स्थमाघ स्याना है ॥३५॥ अन्वय अर्थ-आचार्य कहते हैं कि सदनेकान्ता मकेषु सरवेषु संशयविपर्ययानध्ययसाविहित अध्यवसायः कत्तव्यः ] सनुरूप ( उत्पादत्र्ययध्रौव्वरूप ) एवं अनेकान्तरूप ( अनेकधर्म सहित) पदार्थोंमें जो शंशय विपर्यय अनध्यवसाय ( दोषों से रहित यथार्थ ज्ञान होता हैं, उसको 'सम्यरज्ञान' कहते हैं। [ तत् आत्मरूप] और वह आत्माका स्वरूप या स्वभाव है, अतएव उसको प्राप्त करना ही चाहिये । अर्थात् सम्पूर्ण पदार्थोंकी यथार्थ जानकारी करना अनिवार्य है ॥३५॥ ___ भावार्थ-संसारमें या संयोगी पर्यायमें रहकर जिस जीवने सम्यग्ज्ञान (भेदज्ञाम ) अर्थात् पदार्थों को यथार्थ ( संशयादि रहित सम्यक् ) जानकारी प्राप्त नहीं की, उसका जन्म या जीवन निष्फल है ऐसा समझना चाहिये । हीराको कीमत या आदर तभी होता है जब वह मड़सान पर चढ़कर शुद्ध हो जाता है। इसी तरह आत्मा या जीवकी प्रतिष्ठा पूज्यता तभी होती है जब वह सम्यग्दर्शनादि रत्नत्रय मण्डित हो जाता है, अन्यथा नहीं, यह तात्पर्य है । प्रत्येक पदार्थ अनेक १. अध्यवसाय, निरचम ( जानकारी ) २. संशय, विपर्यय, अनध्यवसायरूप मिथ्याज्ञान । ३. आत्माका स्वभाव या स्वरूप । ४, कह सम्यग्जान । (उभयकोटिस्पशिज्ञान संशयः, एककोटिस्पदिशाम विपर्ययः, अनिश्चितजानमनध्यवसाय:)।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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