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________________ 1०३ FARPoes पुरुषार्थसिद्धयुपाय --- ( संज्ञा राहत ) अंगका स्वरूप यताते हैं सकलमनेकान्तात्मक मिदमुक्त वस्तुजातमखिलः । किमु सत्यमसत्यं वा न जातु शंकेति कर्तव्या ।। २३ ।। D ERESPANmemouvich पध मशामषिन जय ३ सब बहु धर्मबाले है स्वसः । सर्वज्ञवोध विशगता से पा लिया साचा पत्ता ।। उसमें नहीं संभव महो! शंका करन की योग्यता । अखएक निःसन्देह रहना, अंग है निःशंकिता ॥२३॥ अन्वय अर्थ-खिलज: विश्वदी सर्वज्ञ बीतराग भगवान् ने [ इदं सकलं धस्तुजातं अनेकाम्सात्मकं 3 | यह कहा है कि संसारमें मौजूद तमाम पदार्थ ( जीवाजीनादि तस्व) अनेक धर्म वाले हैं. कोई भी एक धर्मवाला नहीं है। इस प्रकार वस्तुको व्यवस्था है, जो स्वतः सिद्ध है और सत्य है। ऐसा जिनवाणी में या दिव्योपदेशमें दृढ़ विश्वास करना अथवा श्रद्धान रखना ही निश्चय सम्यग्दर्शनका पहला अंग कहलाता है । निःसंशयरूप ) । अतएव उसमें [ किम् सत्यं का असत्यं इत जात शंका न केतच्या ] यह शंका या संशय कभी नहीं करना चाहिए कि यह भगवान्का कथन : सर्वपदार्थ अनेक धर्मात्मक हैं । सत्य है कि असत्य है इत्यादि । तभी निःशंकित अंग ( चिह्न) चल सकता है अर्थात् सम्यग्दर्शनका निःशकिल अंग ( अवयव चिह्न ) माना जा सकता है अन्यथा नहीं. यह मल श्रद्धा है। यहाँ पर शंकाका अर्थ सन्देह या संशय लेना चाहिए. दसरे भय या प्रश्न नहीं लेना चाहिए क्योंकि जहाँ जैसा प्रकरण होता है वहाँ वैसा ही अर्थ लिया जाता है यह नियम है। परन्तु यह विशेषता खासकर मोक्षमार्गोपयोगी सात तत्त्वोंके विषय में समझना चाहिए ॥ २३ ।। भावार्थ-साम्यग्दर्शनका मूलमंत्र ( चिह्न जिनवाणी या जिनागम या जिनोपदेशमें या सात तत्त्वों में शंका या संशयका नहीं करना है। यदि नि:संशयपना श्रद्धामें रहता है कि 'नान्यथावादिनो जिना: जिनेन्द्र भगवान्का उपदेश ( तत्त्वोपदेश ) कभी अन्यथा अर्थात् असत्य नहीं ऐसा कुन्दकुन्द महाराजका कहना है । शुभरागको अशुद्ध निश्चयसे उपयोगी कहा है शुद्ध निश्चयनयसे उपयोगी नहीं है यह सारांश है। १. अनेक धर्ममय । २. ज्ञेय या पदार्थ या वस्तु । ३. शंकाके ३ तीन अर्थ होते है, एक संशय या सन्देह अर्थ, दूसरा भय अर्थ, तीसरा प्रदान या जिज्ञासा अर्थ । इनमरा ग्रहां संधाय या सन्देह अर्थ प्रयोजनीय है। ४. सूक्ष्म जिनोदितं सत्त्वं हेतुभिर्ने बाध्यते । आज्ञासिद्धं तु तना ह्यं नान्यथाआदिको जिनाः ।।
SR No.090388
Book TitlePurusharthsiddhyupay
Original Sutra AuthorAmrutchandracharya
AuthorMunnalal Randheliya Varni
PublisherSwadhin Granthamala Sagar
Publication Year
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size14 MB
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