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________________ JA JAW कर्मों को विचित्रता के कारण यह संसार प्रत्यन्त विचित्र है । होनी को कोई नहीं टाल सकता | - देव भी कर्मों को बदल नहीं सकते 1 कर्मबल से प्रेरित होकर मनुष्य पिता आदि को भी मार डालते हैं। JAL MAAAAAAA - JAAAAAA WI कमों की स्थिति नाना प्रकार की है, बुद्धिमान् इसका शोक नहीं करते। कर्माधीन तीव्र वियोग श्रवश्यंभावी है । कर्माधीन लोगों का देव भी कुछ नहीं कर सकते । देवेन्द्र, असुरेन्द्र और नरेन्द्र सब अपने अपने कर्म के अधीन होते हैं । पूर्वोपार्जित कर्मों का फल आँखें बन्द करके ( धैर्यपूर्वक) सहन करना चाहिये । V कर्मोदय के कारण सब एक समान क्रियाशील नहीं होते । कर्मों की गति विचित्र होती है । कर्म के वश से जीव संसार में परिवर्तन ( परिणमन) करता रहता है । कर्मों के भेद से जीवों की गतियां भी भिन्न-भिन्न होती हैं । प्राणी कर्मों के द्वारा नवाये जाते हैं । शुभाशुभ कर्म के उदय को कोई रोक नहीं सकता । कर्मो की विचित्र गति को कोई नहीं जान पाता । निस्सन्देह संसार के प्राणी पूर्वभव में जो कुछ करते हैं, इस भव में उसका फल अवश्य पाते हैं । जो वस्तु प्राप्त होती है वह अवश्य ही प्राप्त होती है । सभी प्राणी अपने कर्मो का फल प्राप्त करने में ही प्रवृत्त हैं । ४१
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
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