SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 15
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Radiixitter WititunfiancianRRA RSS महा -~-~- अनुप्रक्षाओं का चिन्तन किये बिना चित्त का समाधान कठिन है । -- यह मनुष्य का जीवन मरणभर में नष्ट हो जाता है । --- संसार में उत्पन्न सभी वस्तुएं क्षणभंगुर हैं । - संसार क्षणभंगुर है। संसार बिजली के समान क्षणभंगुर तथा सारहीन है। --- इस संसार में किसी की भी जड़ मजबुत नहीं है। ...... संसार में कोई किसी का मित्र नहीं है । --- प्राणियों को रोग और मरण से बचाने के लिए कोई कभी शरण नहीं है। -- संसार में कुछ भी सार नहीं है । - यह संसार दुःख का स्थान है। ---- संसार असार है। ..... इस प्रसार संसार में लेशमात्र भी सुख दुर्लभ है । ..--- यह संसार असार और अत्यन्त दुःखों से भरा है । ..... प्राणी संसाररूपी सागर में बहुत दुःख पाते हैं । ----- दुःख ही संसार का दूसरा नाम है । -- जीव को संसार में अकेले ही परिभ्रमण करना पड़ता है। -- यह जीव अकेला ही जन्मता और अकेला ही मरता है । -- यह अनादि संसार सज्जन पुरुषों की प्रीति के लिए नहीं हो सकता। ---- इस लोक में सब दुःख ही दुःख है, सुख तो कल्पनामात्र है । NAMEIAS HEREnt
SR No.090386
Book TitlePuran Sukti kosha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyanchandra Khinduka, Pravinchandra Jain, Bhanvarlal Polyaka, Priti Jain
PublisherJain Vidyasansthan Rajasthan
Publication Year
Total Pages129
LanguagePrakrit, Sanskrit
ClassificationDictionary & Literature
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy